निर्माण एजेंसी बदलकर हुई अनियमितता
डॉ. आईएस तोमर ने बताया कि 2016 में नगर निगम भवन के निर्माण की स्वीकृति दी गई थी। शासन के निर्देश के अनुसार, किसी भी सरकारी भवन का निर्माण केवल सरकारी निर्माण एजेंसी से ही कराया जाना चाहिए। उनके कार्यकाल में जब निविदाएं निकाली गईं, तो उत्तर प्रदेश जल निगम की कांट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विस ने 12.85 करोड़ रुपये में टेंडर पास किया था। लेकिन, नगर निगम प्रशासन ने शासन के निर्देशों को दरकिनार करते हुए किसी अन्य “चहेती” फर्म को टेंडर दे दिया और अब भवन निर्माण की लागत 18 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है।
मानकों की अनदेखी, फिर भी अधूरा भवन
पूर्व मेयर ने आरोप लगाया कि भवन निर्माण में गुणवत्ता और तकनीकी मानकों की अनदेखी की गई है। 18 करोड़ रुपये खर्च हो जाने के बावजूद भवन अभी तक अधूरा पड़ा है। उन्होंने कहा कि जल्दबाजी में निर्माण कर करोड़ों रुपये का गबन किया गया, जो कि जांच का विषय है।
विजिलेंस जांच से खुलेगा घोटाले का पर्दाफाश
डॉ. आईएस तोमर ने बताया कि नगर निगम के अभियंताओं के पास इतनी बड़ी परियोजना के निर्माण का अनुभव नहीं था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि निर्माण कार्य की निगरानी किसने की? निर्माण की शुरुआत और समाप्ति की तारीख क्या थी? उन्होंने कहा कि आठ साल बीतने के बावजूद भवन अधूरा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इसमें बड़े स्तर पर गड़बड़ियां हुई हैं। यदि विजिलेंस जांच कराई जाए, तो घोटाले की कई परतें खुलेंगी।
नगर निगम के ठेके एक ही फर्म को दिए जा रहे
पूर्व मेयर ने कहा कि नगर निगम का निर्माण विभाग संदेह के घेरे में है। उन्होंने आरोप लगाया कि नगर निगम में एक ही “चहेती” फर्म को लगातार ठेके दिए जा रहे हैं और नियमों को ताक पर रखकर ठेका आवंटन किया जा रहा है। उन्होंने मांग की कि बीते एक साल में नगर निगम द्वारा दिए गए सभी ठेकों की जांच कराई जाए। इससे यह साफ हो जाएगा कि अधिकतर ठेके एक ही फर्म या उससे जुड़ी कंपनियों को दिए गए हैं। पूर्व मेयर ने इस घोटाले को उजागर करने की बात करते हुए कहा कि नगर निगम के निर्माण कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए। उन्होंने विजिलेंस जांच की मांग दोहराते हुए प्रशासन से तत्काल कार्रवाई करने की अपील की है।