भारत-पाक के इस बॉर्डर पर हिंदू और सिंधी मुसलमान रहते हैं। दोनों ही इलाकों की आपस में रिश्तेदारी और रोटी-बेटी का व्यवहार भी है। साल 1947 में अलग होने के बाद अब तक एक लाख लोग इधर आए हैं तो अभी सिंध में लाखों की आबादी है। आपसी रिश्तेदारी की वजह से ये लोग दोनों ओर आतंकी गतिविधियों का साथ नहीं देते हैं। उल्टा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में दी जा रही सहूलियत को लेकर सिंध को अलग देश बनाने की मांग उठा रहे हैं।
हिंदू मुसलमान रिश्ता
बॉर्डर पर सिंधी मुसलमान गाय को अम्मा कहते हैं। गफूर अहमद बुरहान का तला बताते हैं कि बॉर्डर के इस इलाके में भाईचारे की भावना से लोग रहे रहे हैं। एक दूसरे के पर्व, शादी में सम्मिलित होते हैं और कद्र करते हैं।भारत इस सीमा पर है मजबूत
साल 1965 और 1971 की दो लड़ाइयों में भारत इस सीमा पर मजबूत रहा है। 1965 में भारत ने यहां से मुंहतोड़ जवाब दिया था और सुंदरा की ओर भारत की सेना पाकिस्तान में भीतर तक घुसी थी। 1971 में बाखासर से कूच कर 8000 वर्ग किमी सिंध की जमीन को भारत ने कब्जे में ले लिया था। 1999 के कारगिल युद्ध के वक्त पाकिस्तान ने इधर बढ़ने की जुर्रत तक नहीं की।
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आइईएसआई रही है नाकाम
आईएसआई ने जब भी इस इलाके में अपना नेटवर्क बनाने की कोशिश की, तब-तब मात खाई गई है। हेरोइन, हथियार और तस्करी के नेटवर्क को कई बार तोड़ा गया। तस्करों को जेल की हवा खानी पड़ी।
क्यों नहीं पनपता यहां आंतक
-छितराई आबादी और रेगिस्तान का इलाका
-सिंध में सर्वाधिक हिंदू, जो भारत के भरोसेमंद
-1971 के युद्ध में सिंध रहा है भारत के कब्जे में
-पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों की यहां नहीं चलती
-सिंध की खुफिया जानकारी भारत पहुंचती है आसानी से
-बाड़मेर के सिंधी मुसलमान नहीं देते हैं पाकिस्तानी एजेंसियों का साथ