चिकित्सकों के अनुसार यह दुर्लभ व गंभीर ऑटोइम्यून विकार है। इसमें व्यक्ति की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली उसकी नसों पर हमला करने लगती है। यह स्थिति तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है, जिससे मांसपेशियों में कमजोरी, झुनझुनी और कभी-कभी पूरी तरह से लकवा तक हो सकता है। अब तक आधा दर्जन केस सामने आ चुके हैं। देवली में ज्यादातर लकवे के लक्षण दिखाई दिए हैं। पिछले दिनों शहर के पटेल नगर में एक युवक की मौत भी सिंड्रोम से ग्रसित होने के बाद हुई थी।
यह हो सकते है लक्षण इस बीमारी के लक्षण धीरे-धीरे शुरू होते हैं और कुछ ही दिनों या हफ्तों में गंभीर हो सकते हैं। इनमें हाथों और पैरों में झुनझुनी या सुन्नता मांसपेशियों में कमजोरी होने लगती है। चलने में कठिनाई या संतुलन का बिगड़ना। हाथ-पैरों का लकवा व सांस लेने में कठिनाई होती है। बोलने या निगलने में परेशानी होती है। हृदयगति या रक्तचाप में असामान्यता शामिल हैं।
इलाज की यह है प्रक्रिया चिकित्सकों के अनुसार जीबीएस का कोई स्थाई इलाज नहीं है। इसके प्रभावों को कम करने और सुधार के लिए कुछ उपचार उपलब्ध हैं। जिनमें (इम्यूनोग्लोब्युलिन थेरेपी), शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को शांत करता है। (प्लास्माफेरेसिस) खून से हानिकारक एंटीबॉडी हटाना, (फिजिकल थेरेपी) मांसपेशियों की ताकत और मूवमेंट को बहाल करने में मदद करना है।
आधिकारिक डाटा नहीं आए… देवली चिकित्सालय के अधिकारी प्रभारी डॉ. राजकुमार गुप्ता का कहना है कि उन्हें भी सिंड्रोम से ग्रसित लोगों की जानकारी मिली है। लेकिन इस तरह के आधिकारिक डाटा उन्हें नहीं मिले हैं। उच्चाधिकारियों को इस मामले में जानकारी दे दी गई है।