तारीख पर तारीख…लंबी कानूनी प्रक्रिया के आगे हिम्मत हार जाती हैं पीड़िताएं
Patrika Raksha Kavach Abhiyan : न्याय सिर्फ फैसला सुनाने का नाम नहीं, बल्कि पीड़ित के दर्द को कम करने की प्रक्रिया भी है। जब यही न्याय देरी से मिलता है तो पीड़िता के घाव भरने की बजाय और गहरे होते जाते हैं। रेप और घरेलू हिंसा जैसी घटनाओं में जहां हर दिन मानसिक और शारीरिक संघर्ष से गुजरना पड़ता है…
Delayed Justice in Crime Against Women : न्याय सिर्फ फैसला सुनाने का नाम नहीं, बल्कि पीड़ित के दर्द को कम करने की प्रक्रिया भी है। जब यही न्याय देरी से मिलता है तो पीड़िता के घाव भरने की बजाय और गहरे होते जाते हैं। रेप और घरेलू हिंसा जैसी घटनाओं में जहां हर दिन मानसिक और शारीरिक संघर्ष से गुजरना पड़ता है, वहां पुलिस के बाद अदालतों की लंबी प्रक्रिया(Crime Against Women) किसी दूसरी सजा से कम नहीं लगती। तारीख पर तारीख, सिस्टम की सुस्ती और अपराधियों का बेखौफ घूमना पीड़िताओं के दर्द को बढ़ाता है।
ये भी पढें – जब आरोपियों ने महिला को अर्धनग्न कर गांव में कराई थी परेड… केंद्र सरकार ने 2012 में देश में चर्चित निर्भया कांड(Nirbhya Rape Case) के बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट पर विचार किया। दिसंबर 2012 केंद्र सरकार एक समर्पित योजना लेकर आई, जिसे निर्भया फंड का नाम दिया। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधीन यह फंडमहिला सुरक्षा में सुधार की योजनाओं पर खर्च किया जा सकता है। यह ऐसा कार्पस फंड है, जिसका बजट लैप्स नहीं होता। पत्रिका रक्षा कवच अभियान(Patrika Raksha Kavach Abhiyan) के तहत आज पांचवीं किस्त में हम चर्चा कर रहे हैं महिला अपराध में न्याय में देरी पर। इसमें सबसे बड़ी बाधा है लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रिया। इसके साथ ही राजनीतिक हस्तक्षेप, सामाजिक दबाव और पुलिस की निष्क्रियता भी प्रमुख समस्याएं हैं।
फास्ट ट्रैक अदालतों में न्याय की स्थिति
भारतीयलोक प्रशासन संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों और महिलाओं से पॉस्को एक्ट प्रकरणों के त्वरित निबटारे के लिए 1023 फास्ट ट्रैक कोर्र्ट स्थापित होने थे। 2019 में व्यवस्था शुरू हुई। अभी देश में 747 फास्ट ट्रैक कोर्ट हैं, 406 में विशेष रूप से पॉस्कोे पर सुनवाई होती है। अभी तक 2,99,624 केस में फैसले हो चुके, जबकि 2,04,122 लंबित(Delayed Justice) हैं। इन कोर्ट से सालभर में 165 केस के निबटारे की उम्मीद की गई। फास्ट ट्रैक कोर्ट के बजट में 60 फीसदी केंद्र और 40% हिस्सेदारी राज्य की होती है। मध्यप्रदेश का 105.96 करोड़ रुपए खर्च होते हैं।
न्याय में देरी की ये सबसे बड़ी अड़चन
विधि मंत्रालय ने फास्ट ट्रेक कोर्ट का थर्ड पार्टी ऑटिड कराया। रिपोर्ट में इसे त्वरित न्याय को सुधार की दिशा में सख्त कदम बताया। रिपोर्ट में मप्र के ग्वालियर का अध्ययन भी किया। इसमें ये 3 बड़ी अड़चन मानी गईं।
1 . अध्ययन से पता चला कि जांच अधिकारियों का स्थानांतरण कई मामलों की जांच में गंभीर बाधा बन रहा है, जिससे प्रभावी जांच में कमी आ रही है। विशेष रूप से निम्न जाति के पीड़ितों से संबंधित पोस्को और बलात्कार के मामलों में संवेदनशीलता नहीं दिखाते।
3. अदालतों पर अन्य अपराधों के मामलों का अतिरिक्त बोझ भी न्याय को प्रभवित कर रहा है। पुलिस द्वारा मामलों की गलत फाइलिंग एक और बड़ी चुनौती है। कई मामलों में तो केस लंबित होने के दौरान ही पीड़ित अन्य शहरों में चले जाते हैं।
केस से ऐसे समझें
मेडिकल की पढ़ाई की तैयारी के लिए दूसरे शहर से इंदौर आई छात्रा का सोशल मीडिया पर एक युवक से परिचय हुआ। छात्रा को बातों में उलझा आरोपी ने होटल में रेप(Delayed Justice in Crime Against Women) कर वीडियो बना लिए। आरोपी सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी देकर डराने लगा। छात्रा ने परिवार को बताया और हिम्मत जुटाकर विजयनगर थाने पहुंची। उसे गिरफ्तार करने की बजाए पुलिस ने आवेदन लेकर जांच के नाम पर पीड़िता से चक्कर लगवाए। आरोपी भी धमकाता रहा। पुलिस के रवैये से परेशान परिजन छात्रा की पढ़ाई छुड़वाकर साथ ले गए।
प्रयासों से त्वरित न्याय, व्यवस्था बनेगी प्रभावी
लोकप्रशासन संस्थान ने फील्ड विजिट में पाया कि आपसी प्रेम संबंधों को मान्य करें, बाल विवाह रोकने को समाज में जागरूकता फैलाएं तो इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है। न्यायालयों में एक-एक कर विशेष पोस्को न्यायाधीशों की नियुक्ति हो। जांच एजेंसी और अभियोजन पक्ष के बीच सूचना प्रणाली मजबूत करना भी आवश्यक है। बाल पीड़ितों के सही मार्गदर्शन से मामलों के निपटारे की गति बढ़ेगी।
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