एप्को में एक्सपर्ट जमा हुए। इनके मुताबिक शहर की की जैवविविधता को बचाना केवल एजेंसियों के बस की बात नहीं। इसमें आम लोगों को भी साथ आना होगा। पूर्व संयुक्त सचिव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन डॉ. सुजीत कुमार बाजपेयी के मुताबिक रामसर साइट्स और वेटलैंड और शहर के विकास के बीच तालमेल जरूरी है।
इनके मुताबिक रामसर साइट्स का दर्जा देने के लिए अभी जो नियम हैं उसमें कुछ संशोधन हो सकते हैं। इस पर केन्द्रीय स्तर पर बात चल रही है, जो तालाब सरोवर और झील बचाने में मददगार होंगे।
भोपाल को क्यों नहीं मिला वेटलैंड सिटी का दर्जा
इंदौर और उदयपुर यूनेस्को की सूची में वेटलैंड सिटी बन गए।
भोपाल का भी प्रस्ताव था लेकिन मंजूर नहीं हुआ। एप्को के सीनियर साइंटिस्ट लोकेन्द्र ठक्कर के मुताबिक अब तक अधिकारिक रूप से इसकी सूचना नहीं आई। बायोलॉजिकल हम सभी पैमाने पूरे करते हैं। मैकेनिकल प्रबंधन अलग है। दोबारा प्रस्ताव भेजे जाने पर इन्होंने बताया कि कारण जांच रहे हैं। बीस हजार पक्षी, 200 प्रजातियां राजधानी में बड़ा तालाब सहित 18 वेटलैंड हैं।
इनमें एक हजार साल पुराने बड़े तालाब प्रमुख हैं। जो शहर के वेटलैंड का प्रमुख हिस्सा है। 3872 हेक्टेयर में यह तालाब फैला हुआ है। भोज वेटलैंड में 20 हजार पक्षी आते जाते हैं। दो सौ से ज्यादा प्रजातियां है। यहां मछलियों की 43, प्रजातियां, 98 तरह के कीट, 10 प्रजाति के सपीसृप हैं।
दोबारा प्रस्ताव के लिए होंगे एकजुट
पर्यावरणविद् सुभाष सी पांडे के मुताबिक राजधानी में वे सभी खासियत हैं जिन्हें पैमाना बनाया गया। ऐसे में इसे खारिज करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। भोपाल 23 सालों से भोजवेट लैंड हैं। बायोडायवर्सिटी पूरे शहर को प्रभावित करती है। अप्रवासी पक्षी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। सभी पर्यावरविद एकजुट हो रहे हैं। उस रिपोर्ट की भी मांग की जाएगी जिसके आधार पर भोपाल का प्रस्ताव खारिज हुआ।
तवा रामसर साइट को प्रमाणपत्र
एप्को ने तवा रामसर साइटर के लिए प्रमाणपत्र दिया। इसे लेकर कार्यशाला में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व की उपसंचालक, एसडीऔर और रेंज अधिकारी पहुंचे। वेटलैंड डे पर बच्चों को अपने तालाब बचाने शपथ दिलाई गई। अपने तालाबों के बारे में लोग जान सके इसके लिए कार्यक्रम रखें गए थे। कई स्कूली बच्चे इसमें शामिल हुए।