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छतरपुर

परिवहन नियमों से बेखबर चालक खुद और यात्रियों की जोखिम में डाल रहे जान

हर ई-रिक्शा के लिए यह अनिवार्य है कि उसे हर दो साल में फिटनेस टेस्ट कराना हो। बावजूद इसके, अधिकांश ई-रिक्शा चालक एक बार रजिस्ट्रेशन कराने के बाद परिवहन कार्यालय नहीं पहुंच रहे हैं

छतरपुरFeb 28, 2025 / 10:33 am

Dharmendra Singh

e riksha

ई-रिक्शा

जिले में परिवहन विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में ढाई हजार से अधिक ई-रिक्शा पंजीकृत हैं, लेकिन इनमें से एक हजार के पास फिटनेस प्रमाण पत्र नहीं है। परिवहन विभाग की जानकारी के अनुसार, हर ई-रिक्शा के लिए यह अनिवार्य है कि उसे हर दो साल में फिटनेस टेस्ट कराना हो। बावजूद इसके, अधिकांश ई-रिक्शा चालक एक बार रजिस्ट्रेशन कराने के बाद परिवहन कार्यालय नहीं पहुंच रहे हैं, जिससे न केवल उनकी खुद की बल्कि यात्रियों की भी जान खतरे में डाल रहे हैं। इन ई-रिक्शा चालकों की लापरवाही और नियमों की अनदेखी ने प्रशासन के सामने गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है।

फिटनेस के बिना फर्राटा मार रहे चालक


संचालन के दो साल बाद भी फिटनेस टेस्ट कराने की कोई व्यवस्था नहीं हो रही है, जिससे ई-रिक्शा चालकों द्वारा अवैध रूप से गाडयि़ों का संचालन किया जा रहा है। परिवहन विभाग की हालिया जांच में यह सामने आया है कि बहुत से ई-रिक्शा संचालक तीन साल तक बिना फिटनेस के इन्हें चला रहे हैं। इस लापरवाही का मुख्य कारण यह बताया जा रहा है कि डीलरों द्वारा ई-रिक्शा की बिक्री के दौरान ग्राहकों को फिटनेस टेस्ट की जानकारी नहीं दी जाती। नतीजतन, चालक न तो नियमों के प्रति जागरूक हैं और न ही वे फिटनेस के लिए परिवहन कार्यालय पहुंच रहे हैं।

फिटनेस न होने पर क्लेम नहीं मिलेगा


यदि ई-रिक्शा का फिटनेस प्रमाण पत्र नहीं है, तो बीमा के बावजूद दुर्घटना होने पर क्लेम नहीं मिलेगा। इसका मतलब यह है कि अगर दुर्घटना के दौरान चालक या यात्री की मौत होती है, तो बीमा भुगतान का दावा ई-रिक्शा मालिक से नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा, अगर ऑटो में फिटनेस, परमिट, पीयूसी, या बीमा किसी भी दस्तावेज की कमी हो, तो दुर्घटना के दौरान क्लेम की प्रक्रिया में कठिनाइयाँ आ सकती हैं। ऐसे में ऑटो मालिक को जिम्मेदारी लेनी होगी और उसे अपने वाहन के सभी दस्तावेज़ सही करने होंगे।

ऑटो में भी बढ़ रही लापरवाही


ई-रिक्शा के तेजी से बढ़ते चलन के बावजूद जिले में 600 से अधिक ऑटो अब भी सडक़ों पर दौड़ रहे हैं। हालांकि इनकी संख्या में कमी आई है, लेकिन इनमें भी फिटनेस, परमिट, पीयूसी और बीमा जैसी महत्वपूर्ण चीज़ों की कमी पाई जा रही है। कई ऑटो मालिक खर्च बचाने के चक्कर में इन दस्तावेजों को पूरा नहीं कराते, जिससे किसी भी दुर्घटना की स्थिति में यात्रियों और चालक के परिजनों को क्लेम प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है।

गाइडलाइन बनाने की योजना


सडक़ सुरक्षा और यातायात व्यवस्था में सुधार के लिए, परिवहन विभाग ने यह निर्णय लिया है कि ई-रिक्शा और ऑटो के संचालन के लिए एक सख्त गाइडलाइन बनाई जाएगी। इसके तहत, ई-रिक्शा और ऑटो के रूट को पहले से निर्धारित किया जाएगा ताकि जाम और अव्यवस्था की समस्या को कम किया जा सके। इसके साथ ही, शहर के प्रत्येक रूट के लिए स्टैंड का निर्धारण भी किया जाएगा ताकि अवैध संचालन पर कड़ी रोक लगाई जा सके। गाइडलाइन में यह भी तय किया जाएगा कि कॉलोनियों को मुख्य मार्ग से जोडऩे वाले छोटे रूट्स बनाए जाएं, ताकि लोगों को मुख्य मार्ग तक पहुंचने में आसानी हो।

पर्यावरण सुधार के लिए रियायतें


पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर, ई-रिक्शा को एक अच्छा विकल्प माना गया है। इसके संचालन के लिए इन्हें कुछ रियायतें दी गई हैं, जैसे कि इन्हें परमिट से छूट दी गई है, लेकिन फिटनेस जांच हर दो साल में अनिवार्य है। इन उपायों से न केवल परिवहन व्यवस्था में सुधार होगा, बल्कि यातायात के प्रभावी नियंत्रण में भी मदद मिलेगी।

इनका कहना है


रूट निर्धारण और स्टैंड की व्यवस्था के बाद, यह उम्मीद की जा रही है कि अवैध संचालन पर प्रभावी नियंत्रण होगा और यातायात व्यवस्था में सुधार आएगा। यह कदम न केवल सडक़ सुरक्षा के लिए बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
विक्रम सिंह कंग, आरटीओ

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