भवन व उपकरण का नहीं हो रहा था उपयोग
यह परियोजना वित्तीय वर्ष 2017-18 में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत शुरू की गई थी, जिसमें जिले के 7 विकासखंडों – छतरपुर, नौगांव, गौरिहार, बिजावर, बकस्वाहा, राजनगर, और लवकुशनगर में 36-36 लाख रुपए की लागत से मृदा परीक्षण केंद्रों का निर्माण किया गया था। इसके बाद, इन केंद्रों में परीक्षण कार्य के लिए 22 लाख रुपए की लागत से कम्प्यूटर और अन्य उपकरण भेजे गए थे। हालांकि, कर्मचारियों की कमी के कारण ये प्रयोगशालाएं लंबे समय तक बंद पड़ी रही थीं, और किसानों को मिट्टी परीक्षण के लिए मुख्यालय तक जाना पड़ता था।
एक साल में 4500 नमूनों की जांच होगी
अब, इन 7 विकासखंडों में 7 प्रयोगशालाएं फिर से चालू होंगी, जिनमें कुल 31500 किसानों को मिट्टी परीक्षण की सुविधा मिलेगी। हर प्रयोगशाला में एक वर्ष में 4500 नमूनों की जांच की जाएगी, जिससे किसानों को अपनी मिट्टी की सेहत का सही आकलन मिल सकेगा और वे अपनी फसलों के लिए उचित उर्वरक का उपयोग कर सकेंगे।
प्रयोगशाला संचालन के लिए 10 फरवरी तक अनुबंध हो जाएंगे
कृषि विभाग के उप संचालक डॉ. केके वैद्य ने बताया कि इन प्रयोगशालाओं को संचालित करने के लिए हाल ही में युवा उद्यमियों और संस्थाओं से निविदाएं आमंत्रित की गई थीं। इस प्रक्रिया में 82 युवा उद्यमियों और 17 संस्थाओं ने आवेदन किए थे, जिनमें से 4 युवा उद्यमी और 3 संस्थाओं का चयन जिला समिति द्वारा किया गया है। ये चयनित उद्यमी और संस्थाएं आगामी 10 फरवरी तक अनुबंध पर हस्ताक्षर करेंगी और केंद्रों का संचालन शुरू करेंगी।
इसलिए जरूरी है मिट्टी परीक्षण?
मिट्टी परीक्षण कृषि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे किसानों को यह पता चलता है कि उनके खेतों की मिट्टी में कौन-कौन सी पोषक तत्वों की कमी है। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. कमलेश अहिरवार के अनुसार, किसानों को हर तीन साल में एक बार मिट्टी का परीक्षण कराना चाहिए। हालांकि, जिन किसानों के पास साल में दो फसलें होती हैं, उन्हें एक साल में कम से कम एक बार मिट्टी का परीक्षण कराना चाहिए। इससे वे अपने खेतों में खाद और उर्वरक की सही मात्रा का उपयोग कर सकते हैं, जिससे उनकी उपज में वृद्धि हो सकेगी। हालांकि, अभी भी कई किसान बिना परीक्षण के असंतुलित मात्रा में उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग करते हैं, जिससे मिट्टी की सेहत बिगड़ सकती है और उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
जिला मुख्यालय की नहीं लगानी पड़ेगी दौड़
इस नई व्यवस्था के तहत, किसानों को अब हर साल मिट्टी परीक्षण के लिए जिला मुख्यालय नहीं जाना पड़ेगा, और वे अपने विकासखंड में स्थित प्रयोगशालाओं से ही यह सेवाएं प्राप्त कर सकेंगे। इससे न केवल उनकी मेहनत में सुधार होगा, बल्कि क्षेत्रीय स्तर पर कृषि को बेहतर बनाने में भी मदद मिलेगी। इन प्रयोगशालाओं के शुरू होने से जिले के किसान अब अपने खेतों की मिट्टी का परीक्षण आसानी से करवा सकेंगे, जिससे उनके लिए उपयुक्त उर्वरक और फसल की योजना बनाना आसान होगा।