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छतरपुर

बुजुर्ग अंतिम पड़ाव में दिखे बेसहारा तो उन्हें सहारा देने वृद्धाश्रम शुरू किया, 21 साल से दे रही सहारा

प्रयास शुरु किए ,मुश्किलें भी आई, लेकिन वुमन डवलपमेंट प्रोग्राम के जरिए मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ की महिला समाजसेवियों से संपर्क बढ़ा तो उन्होंने हौसला बढ़ाया।

छतरपुरFeb 25, 2025 / 10:49 am

Dharmendra Singh

older persons

वृद्धाश्रम में रह रही बुजुर्ग माताएं

छतरपुर. कोऑपरेटिव बैंक में मैनेजर की नौकरी के दौरान वुमन डवलपमेंट प्रोग्राम के तहत ग्रामीण महिलाओं का आर्थिक स्तर सुधारने की मुहिम में ग्रामीणों के संपर्क में आने के बाद मैनेजर की सोच ही बदल गई। महिलाओं की समस्याओं,खासतौर पर बुजुर्ग महिलाओं व पुरुषों को जीवन के अंतिम पडाव में बेसहारा देखा दो दिल पसीज गया। लाचार-वेबस बुजुर्गो को सहारा देने के लिए वृद्धाश्रम शुरु किया। शुरु में मुश्किलें भी आई, लेकिन फिर जनसहयोग मिला और सरकारी सहायता भी, इस तरह से एक महिला के प्रयास से आश्रम 21 साल से बुजुर्गो का सहारा बना हुआ है। 25 बुजुर्गो के परिजनों का हृद्यपरिवर्तन तक कराया, जो वृद्धाश्रम से अपने बुजुर्ग माता-पिता को वापस ले गए।

2003 में शुरु किया वृद्धाआश्रम


समाज में महिलाओं व बुजुर्गो की दशा देखकर 1995 में उनकी मदद के लिए कुछ करने का जज्बा तो जाग गया, लेकिन काम आसान नहीं था। प्रयास शुरु किए ,मुश्किलें भी आई, लेकिन वुमन डवलपमेंट प्रोग्राम के जरिए मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ की महिला समाजसेवियों से संपर्क बढ़ा तो उन्होंने हौसला बढ़ाया। शुरुआती दिक्कतों से जुझते हुए प्रभा वैध ने वर्ष 2003 में 1 अक्टूबर को वृद्धाआश्रम की शुरुआत की। शुरुआत में तीन बुजुर्ग आश्रम में रहने के लिए आए। जिसमें से एक के परिवार में प्लेग बीमारी के चलते कोई जीवित नहीं बचा था। दूसरे दिव्यांग और तीसरे बुजुर्ग भी बेसहारा थे। इनको सहारा देने के तीन साल तक आश्रम चलाने के लिए आर्थिक संकट का सामना भी करना पड़ा, लेकिन फिर लोगों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया। आश्रम में आज भी नकद आर्थिक सहायता नहीं ली जाती है, लेकिन खाद्य सामग्री, मरम्मत कार्य कराकर लोग आश्रम को मदद दे रहे हैं। छतरपुर शहर व नौगांव के कुछ लोग लगातार आश्रम में मदद कर रहे हैं।

इस घटना ने किया द्रवित


30 साल से समाजसेवा के कार्यो से जुड़ी प्रभा वैध बताती है कि चौरसिया समाज की बुजुर्ग महिला का आश्रम में रहने के दौरान निधन हो गया था। उनके दो बेटों को सूचना भेजी तो बहुओ ने पार्थिव शरीर घर लाने से मना कर दिया। बेटे अंतिम संस्कार करने पहंचे लेकिन मां के पार्थिव शरीर को अपने साथ ले जाने को तक तैयार नहीं थे। उसके बाद आश्रम ने उनका अंतिम संस्कार कराया, लेकिन वर्तमान समाज में बेटों की इस मानसिकता को देखकर मन द्रवित हो गया था।

बुढापे में मां का छोड़ा साथ


शहर के दर्शना वृद्धा आश्रम में रह रही माताएं आधुनिक कहे जाने वाले समाज पर तंज है। इन्हें उनके उन बेटों ने बुढापे में वृद्धाआश्रम में छोड़ दिया, जिनकी परवरिश के लिए इन्होंने जीवन भर खुशियों का त्याग किया। उन्हीं बेटों ने मुंह मोड़ लिया है। वृद्धा आश्रम में रह रही मांताओं को भले ही अपनों का सहारा न रहा हो, लेकिन जिंदगी के अंतिम पड़ाव में वे प्रभा वैध व बुजुर्ग महिलाएं आपस में मिलजुलकर एक दूसरे का दुख-दर्द बांट रही हैं।

बच्चो में संस्कार जरूरी


प्रभा वैध कहती है कि समाज में वृद्धा आश्रम की जरूरत न हो ऐसा समाज होना चाहिए। पत्रिका के माध्यम से उन्होंने बच्चों को संस्कार देने की अपील की है। बच्चों में ऐसे संस्कार हो कि वृद्धा आश्रम की जरूरत ही न पड़े। हर बेटा-बेटी माता-पिता के बुढापे में उन्हे सम्मान व सहारा दें। संस्कारों की कमी और शराब की लत के चलते बुंदेलखंड में बुजुर्गो का जीवन अकेला व दुस्कर होता जा रहा है। केवल संस्कार ही समाज में आई इस विकृति को ठीक कर सकते हैं। प्रभा बताती है कई बेटे का आश्रम में अपने माता पिता को देखने के बाद हृद्य परिवर्तन हो गया, अपनी गलती सुधारी और बुजुर्ग माता-पिता को वापस भी ले गए।

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