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Mahabharat Secret: कैसे हुआ था भीष्म पितामह का वध, जानिए महाभारत की रहस्यमयी घटना

Mahabharat Secret: भीष्म पितामह महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक थे। कौरव और पांडवों दोनों की सेना में कोई ऐसा योद्धा नहीं था जो इनको परास्त कर सके।

भारतFeb 05, 2025 / 01:16 pm

Sachin Kumar

Mahabharat Secret

भीष्म पितामह का वध

Mahabharat Secret: महाभारत युद्ध आज तक के सबसे बड़े युद्धों में से एक माना जाता है। यह युद्ध लगातार 18 दिन तक चला था। महाभारत के युद्ध से धर्म, अधर्म, नीति से जुड़ी कई रहस्यमयी घटनाएं हैं।
इन्हीं घटनाओं में भीष्म पितामह के वध का रहस्य भी शामिल है। क्योंकि पितामह को अमरत्व और अजेय रहने का वरदान प्राप्त था। तो फिर महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह का वध कैसे हुआ? आइए यहां जानते हैं भीष्म वध की रोचक कहानी।

कैसे बने देवव्रत से भीष्म

भीष्म पितामह को बचपन में देवव्रत के नाम से जाना जाता था। राजा शांतनु और गंगा के पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता की खुशी के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य रहने का प्रण लिया और सिंहासन का त्याग कर दिया था। इसी कारण उन्हें भीष्म नाम मिला और उनके इस त्याग से प्रसन्न होकर उनके पिता ने उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान दिया।

भीष्म पितामह को अजेय रहने का वरदान

भीष्म महाभारत के सबसे पराक्रमी योद्धाओं में से एक थे। उन्हें भगवान परशुराम से शिक्षा मिली थी और वे अपराजेय माने जाते थे। उनके पास इच्छामृत्यु का वरदान था, जिसका अर्थ था कि वे तब तक जीवित रह सकते थे। जब तक वे स्वयं मृत्यु को स्वीकार नहीं कर लेते। यही कारण था कि कौरवों की ओर से युद्ध में भाग लेने वाले भीष्म को पराजित करना असंभव था।

शिखंडी की भूमिका

जब पांडवों को यह अहसास हुआ कि भीष्म पितामह को हराना असंभव है, तो उन्होंने श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन मांगा। श्रीकृष्ण ने बताया कि भीष्म कभी किसी स्त्री पर शस्त्र नहीं उठाएँगे और नारी रूप में जन्मे शिखंडी के सामने वे युद्ध नहीं करेंगे।
शिखंडी, जो पहले अंबा नाम की राजकुमारी थी और पिछले जन्म में भीष्म से बदला लेना चाहती थी। वह अगले जन्म में एक पुरुष योद्धा बना। अर्जुन ने युद्ध में शिखंडी को अपने रथ के आगे कर दिया। जब शिखंडी ने भीष्म पर बाण चलाए, तो भीष्म ने कोई प्रतिकार नहीं किया। क्योंकि वे उसे स्त्री रूप में देखते थे। इस मौके का लाभ उठाकर अर्जुन ने भीष्म पर बाणों की वर्षा कर दी। जिससे भीष्म पितामह धराशायी हो गए और तीरों की शय्या पर गिर पड़े।

भीष्म पितामह की इच्छामृत्यु

भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों के प्रहार से कुरुक्षेत्र के मैदान में धराशायी हो गए। लेकिन उन्होंने तुरंत प्राण नहीं त्यागे। वे शरशय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करने लगे। जब सूर्य उत्तरायण हुआ तब उनके पास धर्मराज युधिष्ठिर और अन्य सगे संबंधि गए। सब को देखकर पितामह ने कहा कि मेरे भाग्य का माघ महीना आ गया है। अब मैं अपना शरीर त्यागना चाहता हूं। इसके बाद भीष्म पितामह ने सभी से विदा मांगते हुए अपना शरीर त्याग दिया।
भीष्म पितामह का वध महाभारत की सबसे रणनीतिक और रहस्यमयी घटनाओं में से एक है। श्रीकृष्ण की नीति, अर्जुन के बाण और शिखंडी की भूमिका के कारण ही यह संभव हो पाया। यह घटना यह भी दर्शाती है कि सबसे महान योद्धा भी नीति और नियति से नहीं बच सकते।
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डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका www.patrika.com दावा नहीं करता है। इन्हें अपनाने या इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

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