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धौलपुर

फसलों पर दिख रहा जलवायु परिवर्तन का असर, संभाग में पिछले दो सालों में सरसों उत्पादन में आई कमी

वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दे के रूप में उभर कर आया है। बदलते मौसम से राज्य में बाढ़ए सूखा, कृषि संकट एवं खाद्य सुरक्षा, बीमारियां, प्रवासन आदि का खतरा बढ़ा है। राजस्थान का एक बड़ा तबका आज भी कृषि पर निर्भर है लेकिन होते जलवायु परिवर्तन ने किसानों सहित कृषि विशेषज्ञों की चिंता को बढ़ा दिया है। बदलते मौसम का सीधा असर रवी और खरीफ की फसलों पर पड़ रहा है। जिस कारण राज्य में सरसों फसल की पैदावार में कमी देखी जा रही है।

धौलपुरFeb 11, 2025 / 06:46 pm

Naresh

फसलों पर दिख रहा जलवायु परिवर्तन का असर, संभाग में पिछले दो सालों में सरसों उत्पादन में आई कमी Impact of climate change visible on crops, mustard production decreased in last two years in the division
– पकी फसल को नुकसान पहुंचा रहे बेमौसम ओलेए बारिश, अंधड़

भगवती प्रसाद तिवारी

धौलपुर. राज्य का भरतपुर संभाग अकेले ही देश की सरसों पैदावार में 48 प्रतिशत का योगदान देता है। यहां की भौगोलिक परिस्थितियां, मौसम, कोहरे युक्त सर्दी की वजह से सरसों की अच्छी पैदावार होती हैए लेकिन पिछले दो सालों से जलवायु परिवर्तन की मार से सरसों रकवा बढऩे के बावजूद पैदावार में कमी देखी जा रही है। जहां गत सीजन 2023 की पैदावार 1 लाख 68 हजार 972 टन पर ही रह गई।
वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दे के रूप में उभर कर आया है। बदलते मौसम से राज्य में बाढ़ए सूखा, कृषि संकट एवं खाद्य सुरक्षा, बीमारियां, प्रवासन आदि का खतरा बढ़ा है। राजस्थान का एक बड़ा तबका आज भी कृषि पर निर्भर है लेकिन होते जलवायु परिवर्तन ने किसानों सहित कृषि विशेषज्ञों की चिंता को बढ़ा दिया है। बदलते मौसम का सीधा असर रवी और खरीफ की फसलों पर पड़ रहा है। जिस कारण राज्य में सरसों फसल की पैदावार में कमी देखी जा रही है। पीला सोना के लिए ख्यात भरतपुर संभाग भी इससे अछूता नहीं रहा। पिछले दो सालों के आंकड़ों को देखे संभाग भर में 2022 के दौरान 18 लाख 91 हजार 519 टन सरसों तो 2023 में 10 लाख 68 हजार 972 टन सरसों का ही उत्पादन हुआ। जिसकी बड़ी वजह बदलते मौसम को माना जा रहा है।
पृथ्वी के तापमान में 0.7 डिग्री की वृद्धि

राजस्थान में जहां एक समान बारिश हो रही हैए वहीं साल भर में कुल बारिश के दिनों की संख्या कम हो गई है। कुछ इलाकों में बारिश के दिनों के साथ.साथ कुल बारिश भी कम हो रही है। ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स के अनुसार भारत जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित दस शीर्ष देशों में शामिल है। औद्योगीकरण के प्रारंभ से अब तक पृथ्वी के तापमान में लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है।
जलवायु परिवर्तन: सर्दी में भी गर्मी का अहसास

जलवायु परिवर्तन और बढ़ती गर्मी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मानसूनी सीजन में अच्छी बारिश होने के कारण कड़ाके की सर्दी के आसार वैज्ञानिकों ने लगाए थेए लेकिन हुआ इसके विपरीत। सर्दी का माह जनवरी 2024 में केवल 4 दिन ही न्यूनतम तापमान 6 डिग्री से कम रहा। तो वहीं 2025 में एक बार भी न्यूनतम तापमान 6 डिग्री से नीचे नहीं पहुंचा। जनवरी माह में 16 बार ही रात का तापमान 10 डिग्री से कम रहा। सर्दी के जनवरी माह में अधिकतम तापमान भी 28 डिग्री के करीब पहुंच गया। सोमवार रात्रि को एक बार फिर राज्य में जलवायु परिवर्तन का असर देखने को मिला। जहां राज्य के कई जिलों में हल्की बारिश के साथ मंगलवार तक तेज बारिश हुई। जिसका असर सरसों और गेहूं की पकी फसल पर पड़ेगा। जो कि पैदावार में कमी का आधार बनेगा
जिला साल पैदावार साल पैदावार

अलवर 2022 619531 2023 395074

भरतपुर 2022 528225 2023 273282

धौलपुर 2022 214903 2023 211298

सवाई मा. 2022 295498 2023 171662

करौली 2022 233362 2023 117656
नोट: सरसों फसल टन में दी गई है। नवीन सीजन 2024 फसल मार्च माह से आनी प्रारंभ होगी। हालांकि इस सीजन में भी मौसम की मार के कारण सरसों की फसल पैदावार में कमी का अंदाजा लगाया जा रहा है।
राजस्थान की जलवायु

– शुष्क एवं आद्र्र जलवायु की प्रधानता

– अपर्याप्त एवं अनिश्चित वर्षा

– वर्षा का अनायस वितरण

– अधिकांश वर्षा जून से सितम्बर तक

– वर्षा की परिवर्तनशीलता एवं न्यूनता के कारण सूखा एवं अकाल की स्थिति अधिक होना।
– जलवायु परिवर्तन से फसलों पर प्रभाव पड़ रहा है। कभी अधिक गर्मी तो कभी बारिश और ओले से पकी पकाई फसल नष्ट हो जाती है। पानी के साथ अंधड से भी फसल को नुकसान पहुंचता है। यही कारण है कि फसलों की पैदावार में भी कमी देखी जा रही है।
-बी मुस्कान खिलवानी, डिप्टी डायरेक्टर कृषि अनुसंधान केन्द्र भरतपुर

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