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जयपुर

Jaipur Art Week 2025: कौन हैं सना रिजवान? जो कला की खातिर सीईओ से बनीं आर्ट क्यूरेटर

Jaipur Art Week 2025: सना रिजवान का मानना है कि आर्ट ही वो जरिया, जो हमारी सोच और समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है। भारत के शहरों में ऐतिहासिक इमारतों, धरोहरों, स्थानीय कला के संरक्षण को सहेजने का संदेश देने के उद्देश्य से उन्होंने 2022 में पब्लिक आर्ट्स ट्रस्ट ऑफ इंडिया की स्थापना की। पब्लिक आर्ट्स ट्रस्ट ऑफ इंडिया की ओर से जयपुर आर्ट वीक राजस्थान पत्रिका के सपोर्ट से आयोजित किया गया।

जयपुरFeb 04, 2025 / 04:23 pm

SAVITA VYAS

Sana Rizwan

Sana Rizwan

जयपुर। पब्लिक आर्ट्स ट्रस्ट ऑफ इंडिया (PATI) और जयपुर आर्ट वीक की फाउंडर सना रिजवान कला की दुनिया में एक प्रभावशाली नाम है, जो कला के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का कार्य कर रही हैं। जयपुर आर्ट वीक और जोधपुर आर्ट वीक जैसी पहलों के जरिए उन्होंने भारत के सांस्कृतिक धरोहर को नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। सना का मानना है कि कला सिर्फ प्रदर्शनियों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि समाज की चेतना का हिस्सा बननी चाहिए। सना रिजवान द आर्ट लैब स्टूडियो की संस्थापक हैं, इवेंट क्यूरेटर भी हैं, आर्ट प्रोडक्शन फंड (न्यूयॉर्क) के बोर्ड से जुड़ी हैं, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट (मैसाचुसेट्स) की सलाहकार कला परिषद की सदस्य हैं, मेट्रोपॉलिटन यूजियम ऑफ आर्ट (न्यूयॉर्क) में दक्षिण एशियाई आधुनिक और समकालीन विभाग की संरक्षक भी हैं। सना रिजवान ने राजस्थान पत्रिका के साथ साझा की सीईओ से आर्ट क्यूरेटर बनने की कहानी। पेश है उनके साथ बातचीत के प्रमुख अंश—
Q आप PATI को संभाल रही हैं। द आर्ट लैब, आर्ट प्रोडक्शन फंड और भी कई सारे ऑर्गेनाइजेशन के साथ जुड़ी हैं। क्या पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ को मैनेज करने में परेशानी आती है?
जवाब – मेरे लिए प्रोफेशनल होना ही, पर्सनल है। मेरा काम मेरे जुनून का हिस्सा है। इसलिए यह कहना मुश्किल है कि यह पर्सनल है या प्रोफेशनल। मेरे लिए दोनों के बीच कोई अंतर नहीं रहा। मुझे मेरे काम में खुशी मिलती है, क्योंकि मैं जो भी करती हूं, दिल लगाकर करती हूं। मैं डाउन टू अर्थ रहने में विश्वास करती हूं। यही मेरे प्रोफेशन और पर्सनल को संतुलित बनाए रखने का राज है।
Q आर्ट वीक के लिए आपने जयपुर और जोधपुर ही क्यों चुना?

जवाब- जोधपुर और जयपुर राजस्थान ही नहीं, भारत के ऐसे शहर हैं, जहां परंपरा और आधुनिकता का मेलजोल देखा जा सकता है। इन शहरों का समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास रहा है, यहां की स्थापत्य कला संपन्न है। यहां के लोग कलाप्रेमी हैं। इन सारी खासियतों ने मुझे इतना अचंभित और आकर्षित किया कि मैंने आर्ट वीक की शुरुआत इन दो शहरों से की। दोनों शहर नयेपन और परंपरा के लिए एक मंच देते हैं, जो कलाओं के प्रदर्शन के लिए सबसे जरूरी है।
Q आपने पब्लिक आर्ट्स ट्रस्ट ऑफ इंडिया की स्थापना के बारे में कब सोचा, जबकि आप बड़ी कंपनी में सीईओ के पद पर कार्य कर रही थीं?

जवाब- पब्लिक आर्ट्स ट्रस्ट ऑफ इंडिया को लॉन्च करना मेरे जुनून का हिस्सा था। वो जुनून, कला के प्रति समर्पण का है। मुझे लगा कि कला एक साझा अनुभव है, जो कि सांस्कृतिक अनुभव के रूप में फैलाया जा सकता है। मैं कला को हर दिन की जिंदगी का एक हिस्सा मानती हूं। जो लोग कला और जीने को अलग मानते हैं, उनके लिए मैं इस खाई को पाटना चाहती थी। ताकि कला के साथ हम शहरों और वहां की इमारतों से प्यार करना सीख पाएं। इसका उद्देश्य युवा कलाकारों को बढ़ावा देना तो है ही, साथ ही भारत की समृद्ध कलात्मक विरासत का जश्न मनाना भी है। मेरे लिए कलाप्रेमी के तौर पर यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि कला केवल प्रदर्शनियों तक सीमित न रहे, बल्कि सार्वजनिक चेतना का हिस्सा बने।
Q एक बड़ी कंपनी में सीईओ के पद पर रहते हुए आर्ट क्यूरेट करने लगी। सीईओ को क्यूरेटर के रोल में आने में परेशानी हुई होगी?

जवाब- जीवन में ऐसे बदलाव भी अपने आप आ जाते हैं, इनमें बहुत मुश्किल नहीं होती। प्रेस्टीज ग्रुप की सीईओ रहते हुए मैंने बहुत कुछ सीखा। बड़े पैमाने पर लोगों और आयोजनों का प्रबंधन कैसे किया जाए, कैसे लोगों से सहयोग लिया जाए, यह सारा मैनेजमेंट मैंने इस कंपनी में रहते ही सीखा। यही अनुभव कला की दुनिया में कदम रखने की नींव रहा। प्रोफेशनल रहते हुए संस्कृति और रचनात्मकता के प्रति जुनून को इप्लीमेंट करने में इन्हीं अनुभवों ने ही मदद की।
Q क्या आपको लगता है कि कला के जरिये सोशल रिफॉर्म पर काम किया जा सकता है?
जवाब- आर्ट ही वो जरिया है, जो सोच में, समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है। पॉजिटिव चेंज लाने में कला ही सक्षम है। कला के जरिये आप हर गलत को अपनी रचनात्मकता के साथ चुनौती दे सकते हैं। आम लोगों के विचार बदल सकते हैं, समाज में संवाद को बढ़ावा दे सकते हैं। यह सारी चीजें समाज को नई दिशा देती हैं, मुद्दों पर विचार करने की चेतना भी देती हैं। कला की आवाज बहुत तेज है, ये वहां तक पहुंचती है, जहां उसे सुना जाना जरूरी हो जाता है और जहां आवाज बुलंद हो, वहां सोशल रिफॉर्मेशन आता ही आता है।
Q बड़े आयोजन करना भी एक बड़ा चैलेंज है। आप इस चैलेंज को एंजॉय करती हैं या मैनेज?

जवाब- यह सच है कि बड़े पैमाने पर होने वाले आयोजन बेहद डिमांडिंग होते हैं। यह इतनी बड़ी चुनौती होती है कि आपकी सारी ऊर्जा और क्रिएटिविटी ले लेते हैं। लेकिन मैं इन चुनौतियों के बीच बढ़ते जाने को नए अवसरों के रूप में देखती हूं। चुनौती का सामना करने का एक ही तरीका है कि आपको मजबूती के साथ हर हाल में बने रहना है। मैं जीवन के अप एंड डाउन को एंजॉय करती हूं और अपनी क्रिएटिव टीम के साथ लगातार मेहनत करती हूं।

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