जयपुर। किताबों का अलग संसार है। मेले में आएं तो किताबें लेकर जरूर जाएं। किताब के पन्ने पलटने का अलग ही सुख है। मोबाइल में किताब पढ़ते वक्त वो अनुभूति नहीं होती। यह बात मंगलवार को जवाहर कला केंद्र के शिल्प ग्राम में चल रहे पत्रिका बुक फेयर के सत्र पब्लिशिंग इंडस्ट्री इनसाइट्स में कवि और प्रकाशक माया मृग ने कही।
उन्होंने अपने घर की लाइब्रेरी का जिक्र करते हुए कहा कि धूल झाड़ते हुए मुझे किताबों से प्यार हो गया। प्रकाशक-लेखक के रिश्ते को लेकर उन्होंने कहा कि प्रकाशक ऐसा होना चाहिए, जो लेखक की किताब को पाठकों तक लेकर जाए। मौजूदा समय में सेल्फ पब्लिशिंग का ट्रेंड चल रहा है। लेखक खुद पैसा खर्च करता है। प्रकाशक अब रिस्क नहीं लेता है।
हर किताब की अपनी यात्रा होती है। पहले कहानी या कविता लिखी जाती हैं। उसके बाद लेखक उस संग्रह को प्रकाशक के पास लेकर जाता है। प्रकाशक तय करता है कि किताब को क्या आकार देना है। रीति-नीति के अनुरूप उसे छापा जाता है। चरणबद्ध तरीके से एक किताब को लॉन्च किया जाता है।
आजीविका का साधन लेखन नहीं रहा
चर्चा में यह बात सामने आई कि अब आजीविका का साधन लेखन नहीं रहा है। मृग ने कहा कि उस समय परंपरागत तरीका हुआ करता था। लेेखक कहानी लिखता था और प्रकाशक किताब को छापकर बेचता था।