Opinion : बेहतर शिक्षण संस्थानों से ही थमेगा प्रतिभा पलायन
तकनीक के साथ कदमताल करते हुए दुनिया भर के उच्च शिक्षा संस्थान नवाचारों के साथ-साथ शोध पर भी जोर दे रहे हैं। यह भी सच है कि भारत के विश्वविद्यालयों समेत दूसरे उच्च शिक्षण संस्थान भी पिछले वर्षों में तरक्की के नए पायदानों पर पहुंचे हैं, लेकिन जब इन शिक्षण संस्थानों की विश्वस्तरीय रैंकिंग सामने […]
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तकनीक के साथ कदमताल करते हुए दुनिया भर के उच्च शिक्षा संस्थान नवाचारों के साथ-साथ शोध पर भी जोर दे रहे हैं। यह भी सच है कि भारत के विश्वविद्यालयों समेत दूसरे उच्च शिक्षण संस्थान भी पिछले वर्षों में तरक्की के नए पायदानों पर पहुंचे हैं, लेकिन जब इन शिक्षण संस्थानों की विश्वस्तरीय रैंकिंग सामने आती है तो हमारे उच्च शिक्षण संस्थान मुकाबले में कहीं पीछे नजर आते हैं। ऐसा इसलिए कि विकसित कहे जाने वाले देशों के शैक्षणिक संस्थान किताबी ज्ञान के साथ-साथ कौशल विकास को भी प्राथमिकता देते हैं। टाइम्स हायर एजुकेशन वल्र्ड रेपुटेशन रैंकिंग-2025 में भारत के चार प्रमुख विश्वविद्यालयों का भी नाम है। चिंता इस बात की है कि इन विश्वविद्यालयों समेत पिछली बार भारत की जितनी भी उच्च शिक्षण संस्थाएं रैंकिंग में शामिल थीं, उनमें इस बार गिरावट आई है।
विश्व स्तरीय रैंकिंग में भारत का नाम आना हमारे लिए भले ही संतोष की बात हो, लेकिन यह सवाल भी जरूर उठना चाहिए कि आखिर हमारे ज्यादा संस्थान ऐसी रैंकिंग में जगह क्यों नहीं बना पाते? सवाल यह भी कि जो संस्थान एक बार रैंक सूची में आते हैं तो फिर अगली बार उससे भी नीचे वाली रैंक में क्यों आने लगते हैं? जाहिर है उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सरकार और निजी क्षेत्र दोनों को अभी और प्रयास करने बाकी हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, आइआइटी दिल्ली, आइआइटी मद्रास और सूची में नई शामिल हुई शिक्षा ‘ओ’ अनुसंधान जैसी संस्थाएं और खड़ी करनी होंगी। ऐसा तब ही संभव है जब हमारे संस्थानों में विश्वस्तरीय संसाधन व सुविधाएं उपलब्ध हों। आज तो हालत यह है कि हमारे यहां से विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए अमरीका, यूके, चीन और जापान की शीर्ष शिक्षण संस्थानों में दाखिले को लालायित रहते हैं। जो इन संस्थानों में दाखिला लेने में सफल हो जाते हैं उनमें से अधिकांश फिर वहीं रोजगार भी हासिल कर लेते हैं। प्रतिभा पलायन की बड़ी वजह भी यही है कि भारत में विश्वस्तरीय संस्थान गिनती के ही हैं।
आज दूसरे विकसित देशों के साथ एशियाई देशों में हमारी स्पर्धा चीन के साथ है, जो कि आर्थिक मोर्चे के बाद शैक्षिक मोर्चे पर भी लगातार आगे नजर आ रहा है। यदि हम भविष्य में वैश्विक स्तर पर हमारे संस्थानों को और प्रतिस्पर्धी व बेहतर बनाने चाहते हैं तो अपनी शिक्षा में नवाचार, कौशल प्रशिक्षण और गुणवत्ता का खास ध्यान रखना होगा। नई शिक्षा नीति इस तरह के अवसर भी प्रदान करती है। प्रतिभाओं का इस्तेमाल हमारे देश में ही होना चाहिए।
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