आज हम संवादहीन दौर से गुजर रहे हैं। आपस में बातचीत कम करते हैं और पढ़ते भी कम हैं। हम पर तकनीकी हमला भी हुआ है, जिसके कारण हम मोबाइल में खोए रहते हैं। बच्चों की किताबों में रुचि नहीं है, माता-पिता भी ऐसा वातावरण नहीं दे रहे हैं। माता-पिता भी तकनीकी हमले के शिकार हैं।
यह बात वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने कही। वे शनिवार को जयपुर के जवाहर कला केंद्र में चल रहे पत्रिका बुक फेयर में राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की पुस्तक ‘संवाद उपनिषद्’ पर चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा, संवाद का अर्थ यह है कि सच में हम कुछ कहना चाहते हैं और सच में कोई सुनना चाहता है। अर्थ वाले संवाद में छीजत हो रही है। संवाद तो गर्भ से ही शुरू हो जाता है। बच्चे का पहला संवाद मां से होता है। मां बच्चे से बात कर सकती है और बच्चा मां की बात समझता है। पुस्तक में भी संवाद की यह बात रखी है। इसमें आत्मा की बात और वेद विज्ञान की बात है। संवाद तो मौन और सन्नाटे में भी अभिव्यक्त होता है। इन सभी को इसमें समेटा है। उन्होंने कहा, पत्रकार को शिक्षक की तरह होना चाहिए।
पत्रकार विवेक साझा करता है। विवेक मिलता नहीं है वह अर्जित करना पड़ता है। इस बात पर इस पुस्तक में लेखक ने जोर दिया है। पत्रकार को स्कॉलर होना चाहिए। पत्रकार का काम केवल सूचना देना नहीं है। सूचना तो सरकारी माध्यम भी दे सकते हैं। आज के दौर में कोई सरकार और कोई नेता नहीं चाहता कि संवाद हो। इस तरह की चुप्पी का संवाद समाज के लिए खतरा है। बाजार, पूंजी और ग्लैमर ने मीडिया को ढंक दिया है।
‘संवाद उपनिषद’ में बताया गया है कि प्रत्येक संवाद का एक ही लक्ष्य होता है कि सुनने वाले के मन को प्रभावित करना, ताकि वह संवाद उसी रूप में समझ सके, जिस रूप में संप्रेषित हुआ है। बुद्धि के तर्क इसमें बाधा नहीं बने। अत: संवाद केवल मन से किया जाए, बुद्धि से नहीं। शरीर, मन और बुद्धि संवाद के साधन मात्र है। संवाद आत्मा से चलता है और आत्मा तक ही पहुंचना चाहिए। पुस्तक में संप्रेषण सिद्धांत, मन, प्राण, बात की भूमिका के साथ ही शब्द ब्रह्म और संप्रेषण के घटक सहित संवाद की विशेषताओं की जानकारी है।
पुस्तक नया आयाम खोलेगी
बुक फेयर में मॉर्डरेटर तिवारी ने कहा कि ‘संवाद उपनिषद्’ पुस्तक की रचना सामान्य काम नहीं है। असाधारण प्रतिभा का धनी व्यक्ति ही यह काम कर सकता है। यह पुस्तक युवाओं के लिए एक नया आयाम खोलेगी, उन्हें संप्रेषण का महत्व समझाने के साथ वैचारिक गहराई देगी।
श्रोता वही अर्थ लगाए जो वक्ता का है
वरिष्ठ पत्रकार सुकुमार वर्मा ने कहा, उपनिषदों का सार गीता है। यह ईश्वर व जीव (कृष्ण और अर्जुन) के बीच संवाद का उपनिषद है। यह पुस्तक भी ऐसे ही संवाद की बात करती है। आत्मा का आत्मा से संवाद है। संप्रेषण का लक्ष्य इस तरह होता कि श्रोता वही अर्थ लगाए जो वक्ता का है।
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युवाओं के जीवन में परिवर्तन लाएगी यह पुस्तक
दूरर्शन के सहायक निदेशक राकेश जैन ने कहा, सच्चा संवाद वही है, जिससे सामने वाले व्यक्ति के व्यवहार में, कर्म और सोच में आधारभूत परिवर्तन आ जाए। आत्मा से आत्मा का संवाद होना चाहिए। इस पुस्तक में संवाद को बेहतर तरीके से समझाया है। इसमें आत्मा की बात कहीं गई है। यह युवाओं के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाने में सक्षम होगी। बोलने वाले में ईमानदारी और सच्चाई होती है तो उसका गहरा व्यापक प्रभाव पड़ता है। पहले आकाशवाणी पर कोई वक्ता बोलता था तो लोग उसे ध्यान से सुनते थे और हर बात पर विश्वास करते थे। उन्होंने कहा, उठने-बैठने और हाव-भाव जैसी सभी बातें संवाद को प्रभावित करती हैं।