हम उसी घाटी में थे, बस एक दिन पहले
विपुल भाटिया और उनके छह मित्रों के परिवारजन, जिनमें महिलाएं व बच्चे शामिल हैं, कुल मिलाकर 28 सदस्यीय दल, इन दिनों पहलगाम में ही है। सोमवार को वे उसी बैसरन घाटी में चार से पांच घंटे गुजारकर लौटे थे, जिसे पर्यटक मिनी स्विट्जरलैंड कहते हैं। अगले दिन ढाई बजे जब हमला हुआ, तब उनका दल घटनास्थल से सिर्फ चार किलोमीटर दूर था। हमले की खबर जब आई, तब घाटी की नर्म धूप और ठंडी हवाएं जैसे सहमकर ठिठक गईं। दल तुरंत होटल लौटा और तब से वहीं बंद है। स्थानीय प्रशासन ने सख्त निर्देश दिए हैं कि सभी पर्यटक होटल में ही रहें।
मोबाइल की घनघना रही घंटियां – सुरक्षित लौट आओ।
हर मित्र, हर संबंधी फोन कर सिर्फ एक ही बात कह रहा है—बस सुरक्षित लौट आओ। विपुल ने फोन पर बताया कि हमारी टिकट 26 अप्रेल की है, लेकिन अब तो मन बस घर लौटने को है। यहां हर तरफ फोर्स है, सन्नाटा है, और मन में बेचैनी। पहलगाम की घाटियां अब गवाह हैं उस डर की, जिसे जैसलमेर का हर परिवार महसूस कर रहा है।.सैलानियों का यह दल 20 अप्रेल को श्रीनगर पहुंचा था। वहां से पहलगाम आए और अब गुलमर्ग जाना शेष था, जो अब अधूरा सपना लगता है।
सहमा है स्वर्णनगरी का मन
जैसलमेर की स्वर्ण रेत भले दूर है, लेकिन वहां के दिल इस वक्त कश्मीर की वीरान घाटियों में कैद हैं। हर पल की खबर, हर सांस की सलामती—यही दुआ है जैसलमेर से पहलगाम तक।