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Aghori Baba: इन 3 कठिन परीक्षाओं को पार कर बनते हैं अघोरी, जानिए साधुओं से कितने होते हैं अलग

Aghori Baba in Mahakumbh 2025: क्या आपको पता है शिव और शक्ति उपासक अघोरी कैसे बनते है। और ये नागा साधु या अन्य साधुओं से कैसे अलग होते है।

प्रयागराजJan 20, 2025 / 04:52 pm

Devika Chatraj

Mahakumbh 2025: प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है। यह आयोजन 13 जनवरी 2025 से शुरू हुआ था और 26 फरवरी तक चलेगा। यहां बड़ी संख्या में देश-विदेश हर जगह से श्रृद्धालु संगम में डुबकी लगाने के लिए पहुंचे हैं। पूरे महाकुंभ में अघोरी (Aghori Baba) और नागा साधु श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इन दोनों ही साधुओं की दुनिया बड़ी रहस्यमयी होती है। दोनों ही साधुओं की जीवन शैली और पूजा विधि अलग-अलग होती है। लेकिन क्या आपको पता है अघोरी बनने की पूरी प्रक्रिया क्या है और अघोरी और साधुओं में क्या अंतर है।

अघोरी बनने की प्रक्रिया

अघोरी साधु तंत्र साधना करते हैं। अघोरियों को डरावना या खतरनाक साधु माना जाता है। अघोरी देखने में बहुत अलग और डरावने लगते है। लेकिन इनके अंदर जन कल्याण की भावना होती है। अघोरी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वो कभी किसी से कुछ नहीं मांगते हैं। लोग श्मशान, लाश, मुर्दे, मांस और कफन से घृणा करते हैं लेकिन अघोरी इनको अपनाते हैं। अघोरी बनने के लिए तीन परीक्षा देनी पड़ती हैं।

ये है तीन परीक्षाएं

अघोरी बनने के लिए जरुरी है एक योग्य गुरु की तलाश करना। गुरु द्वारा बताई हर बात का पालन करना। इस दौरान गुरु द्वारा बीज मंत्र दिया जाता है। इसे हिरित दीक्षा कहा जाता है।
दूसरी परीक्षा में गुरु शिष्य को शिरित दीक्षा देते हैं। इसमें गुरु शिष्य के हाथ, गले और कमर पर एक काला धागा बांधते हैं और शिष्य को जल का आचमन दिलाकर कुछ जरूरी नियमों की जानकारी देते हैं।
तीसरी परीक्षा में शिष्य को रंभत दीक्षा गुरु द्वारा दी जाती है। इस दीक्षा में जीवन और मृत्यु का पूरा अधिकार गुरु को देना पड़ता है। इस दौरान अनेक परीक्षाएं देने पड़ती हैं। सफल होने के बाद गुरु को शिष्य को अघोरपंथ के गहरे रहस्यों के बारे में जानकारी देनी पड़ती है।

अघोरी साधु कौन होते हैं?

अघोरी साधु एक खास तरह की साधना करते हैं, जिसे ‘अघोर पंथ’ कहते हैं। ये साधु श्मशान जैसी जगहों पर रहकर साधना करते हैं और मृत्यु और जीवन के रहस्यों को समझने की कोशिश करते हैं। अघोरी साधु अपने साथ अक्सर नरमुंड रखते हैं, जो जीवन और मृत्यु के चक्र का प्रतीक होता है। ये मांसाहारी होते हैं और जानवरों का कच्चा मांस भी खाते हैं। अघोरी साधु भगवान शिव के भैरव स्वरूप की पूजा करते हैं और तंत्र साधना करते हैं। आमतौर पर ये काले वस्त्र धारण करते हैं लेकिन कई अघोरी निर्वस्त्र भी रहते हैं।

नागा साधु कौन होते हैं?

नागा साधु धर्म के रक्षक होते हैं और समाज में धर्म का प्रचार करते हैं। इनकी परंपरा की शुरुआत 8वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी। ये साधु अखाड़ों में रहते हैं और अपने जीवन को अनुशासन और भक्ति के साथ जीते हैं। नागा साधु मांस और शराब का सेवन नहीं करते। इनका जीवन पूरी तरह से साधना और भक्ति के लिए समर्पित होता है। ये कठिन तपस्या करते हैं और शरीर पर भस्म लगाते हैं।

क्या खाते हैं नागा साधु और अघोरी बाबा

मान्यताओं के अनुसार नागा साधु पूरे दिन में सिर्फ एक समय ही भोजन करते हैं। नागा साधु भिक्षा मांगकर भोजन करते हैं और अगर उन्हें कोई भोजन नहीं देता तो वह भूखे रह जाते हैं। बता दें कि एक दिन में नागा साधु सिर्फ 7 घरों से ही भिक्षा मांग सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ अघोरी मांसाहारी होते हैं और जानवरों का कच्चा मांस भी खाते हैं।

अघोरियों की साधना

अघोरी श्मसान में साधना करते हैं। भगवान शिव की साधना में ये अक्सर लीन रहते हैं। इसके साथ ही तांत्रिक क्रियाओं को सिद्ध करने के लिए ये शव के ऊपर बैठकर तो कभी खड़े होकर भी साधना करते हैं। शव साधना के दौरान ये शव को भोग भी लगाते हैं। श्मशान की साधना करना भी अघोरियों के लिए अति आवश्यक होता है। अघोरियों के प्रमुख साधना स्थान-कामाख्या पीठ के श्मशान, त्र्यम्बकेश्वर के श्मशान और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्मशान हैं। तंत्र साधनाएं पूर्ण करके इन्हें कई तरह की सिद्धियां प्राप्त होती हैं।

नागा साधुओं की पूजन विधि

नागा साधु शिवलिंग पर जल भस्म और बेल पत्र चढाते हैं। नागा साधु आग और भस्म से भी भगवान शिव का पूजन करते हैं। महाकुंभ या कुंभ जैसे आयोजनों के बाद नागा साधु हिमालय में ध्यान और योग के माध्यम से भगवान शिव में लीन रहने हैं।

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