तमिलनाडु में फाल्गुन मास की पूर्णिमा जिस दिन होली मनाई जाती है का रंग, रूप और स्वरूप अलग है। होली जहां पानी का भरपूर उपयोग होता है, वहीं तमिलनाडु में इस दिन भगवान विष्णु के मंदिरों में तीर्थवारी का आयोजन होता है। उत्सव मूर्तियों को निकटवर्ती जलस्रोतों तक ले जाकर अभिषेक किया जाता है। अच्छी बरसात के लिए इंद्र देव की पूजा की जाती है तो कामदेव के दहन से जुड़ी कथा के स्मरण में कामन विझा का आयोजन किया जाता है।
मासी मघम का पवित्र स्नान तमिलनाडु में होली पर्व का महीना फाल्गुन (तमिल में मासी) मघ नक्षत्र की महत्ता को समर्पित है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वरुण देव को वचन दिया था कि हर वर्ष मासी महीने के मघ नक्षत्र के दिन वे सभी जल स्रोतों में स्नान करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि वे सभी शुद्ध व पवित्र रहें। इस परंपरा का पालन सभी मंदिरों में ‘कड़ल आडुम नाल’ के रूप में किया जाता है, जिसमें सभी देवताओं की उत्सव मूर्तियों का निकटवर्ती जलस्रोतों में अभिषेक कराया जाता है जिसे ‘तीर्थवारी’ कहते हैं। यह नक्षत्र काल 13 मार्च की सुबह तक है।
तमिलनाडु में इंद्र विझा सामान्यत: होली पर्व का तमिलनाडु से प्रत्यक्ष संबंध नहीं है लेकिन बसंत के बाद बुवाई के काल की शुरुआत इस अवधि में होती है। फसल के लिए आवश्यक सिंचाई के लिए लोग बारिश पर निर्भर है इसलिए वे अच्छी बारिश की कामना में इंद्र की पूजा करते हुए
‘इंद्र विझा’ मनाते हैं। करीब दो हजार वर्ष पुराने संगमकालीन साहित्य में ‘इंद्र विझा’ का वर्णन मिलता है।
कामन उत्सव तमिलनाडु में होली पर्व का संबंध
कामन पंडिगै के रूप में नजर आता है। कामदेव को भस्म करने वाले भगवान शंकर की कथा से यह पर्व जुड़ा माना जाता है। राज्य के तिरुवैयार से 25 किमी. दूर कामदेव की पत्नी रति ने तिरुनल्लूर मंदिर के अधिष्ठाता भगवान कर्कडेश्वर से अपने पति को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की और भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। इसी कारण यहां हर साल मासी माह की पूर्णिमा को कामन उत्सव मनाया जाता है। परिपाटी के अनुसार यहां अरंडी के पौधे को दो टुकड़ों में काटकर उसकी पूजा करते हैं। इस मंदिर की महिमा यह है कि पौधा आठ दिनों के भीतर फिर से अंकुरित हो जाता है।