सम्पादकीय : मानसून की बारिश को लाभ में बदलना होगा
सृष्टि की अपनी लय होती है। वह जनादेश या अध्यादेश से नहीं, अंतर्निहित नियमों से संचालित होती है। उसने समय से पहले मानसून भेजकर समूचे भारत को प्रफुल्लित कर दिया है। यह प्रफुल्लता देश के लिए मानसून की अहमियत को रेखांकित करती है।


रायपुर में हुई प्री-मानसून बारिश ( Photo – Patrika)
इस बार मानसून अपनी जल-सेना के साथ तय समय से एक हफ्ते पहले केरल पहुंच गया है। फिर साबित हुआ कि इंद्र देवता मुहूर्त देखकर अपने बांधों के फाटक नहीं खोलते। सृष्टि की अपनी लय होती है। वह जनादेश या अध्यादेश से नहीं, अंतर्निहित नियमों से संचालित होती है। उसने समय से पहले मानसून भेजकर समूचे भारत को प्रफुल्लित कर दिया है। यह प्रफुल्लता देश के लिए मानसून की अहमियत को रेखांकित करती है। कृषि प्रधान देश की अर्थव्यवस्था में मानसून के योगदान पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (जो पहले वित्त मंत्री भी थे) ने एक बार कहा था, ‘मानसून देश का असली वित्त मंत्री है।’ भले सिंचाई नेटवर्क के विस्तार ने देश के बड़े हिस्से को सूखारोधी बना दिया हो, बेहतर किस्म के बीजों के इस्तेमाल ने उत्पादन बढ़ा दिया हो, बहुधा कृषि क्षेत्र आज भी मानसून पर निर्भर है।
सिर्फ किसानों की नहीं, अर्थशास्त्रियों की उम्मीदें भी मानसून पर टिकी रहती हैं। मानसून के आगमन की सटीक भविष्यवाणी के लिए भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) बधाई का हकदार है। उसने इस बार मानसून सीजन में सामान्य से ज्यादा बारिश का अनुमान जताया है। ऐसा होना सोने में सुहागे जैसा होगा। अच्छे मानसून से नमी और जलाशयों में पानी में बढ़ोतरी होगी। इससे रबी की फसल को संजीवनी मिलेगी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के सकल घरेलू उत्पाद के अनुमान के मुताबिक कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों की वृद्धि दर 2024-25 में 4.4 फीसदी रह सकती है, जो 2023-24 में 2.7 फीसदी थी। सामान्य से ज्यादा बारिश समग्र वृद्धि को बल दे सकती है। पिछले साल अनुकूल मानसून के कारण कृषि उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा था। इससे महंगाई दर को कुछ हद तक नियंत्रित रखने में मदद मिली। इस बार अच्छा मानसून महंगाई के मोर्चे पर और राहत दे सकता है। मानसून राहत के साथ कुछ चुनौतियां भी लेकर आता है। मानसून के आगमन से पहले विभिन्न राज्यों में भारी बारिश से जान-माल के नुकसान की खबरें संकेत हैं कि आने वाली तारीखों में और कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। बड़े शहरों की जल निकास प्रणाली में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। नई दिल्ली, मुंबई, बेंगलूरु, चेन्नई, जयपुर और अहमदाबाद जैसे शहरों में बारिश के दौरान जगह-जगह जल भराव के हालात पैदा होते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, तमिलनाडु, असम आदि सामान्य मानसून के दौरान ही बाढ़ की विभिषिका झेलते हैं। इस बार सामान्य से ज्यादा बारिश से कैसे हालात पैदा होंगे, इसका अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है। जब तक बाढ़ और जल प्रबंधन की प्रक्रिया सालभर जारी रखने की परंपरा विकसित नहीं होगी, चुनौतियों से पार नहीं पाया जा सकता।
दरअसल, देश को मजबूत मानसून प्रबंधन तंत्र की जरूरत है। मानसून की बारिश को नुकसान के बजाय अधिकाधिक लाभ में बदला जाना चाहिए। जलाशयों का रास्ता नहीं मिलने से बारिश का पानी व्यर्थ बह जाना चिंताजनक है। इस दिशा में भी दीर्घकालीन नीतियों की दरकार है।
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