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दलित उद्यमियों की चिंता और चुनौतियां दूर करना जरूरी

लक्ष्मी वेंकटरमन वेंकटेशन, भारत युवा शक्ति ट्रस्ट की संस्थापक व प्रबंध न्यासी

जयपुरFeb 21, 2025 / 11:01 pm

Sanjeev Mathur

ओडिसा के गरीब दलित परिवार की बेटी और 3 साल की उम्र में पोलियो से ग्रस्त बसंती राणा का एक छोटा परिधान व्यवसाय शुरू करने का सपना शुरू से ही कठिनाइयों से भरा रहा। संघर्षों के बीच हाई स्कूल और सिलाई का व्यावसायिक कोर्स पूरा करने के बाद जब उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू करने की कोशिश की तो किसी भी बैंक ने उन्हें वित्तीय साक्षरता, व्यावसायिक नेटवर्क की कमी और कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि का हवाला देते हुए ऋण नहीं दिया। बाद में बसंती को एक गैर-सरकारी संगठन से ऐसा समर्थन मिला, जिसने उन्हें सफलता की राह दिखा दी। बसंती ने एक प्रशिक्षण केंद्र-सह-सिलाई बुटिक स्थापित किया और 1200 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया, जिनमें से 200 ने अपनी स्वयं की इकाइयां शुरू कीं। ग्रामीण उद्यमी के रूप में बसंती को 2019 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति से विशेष पुरस्कार भी मिला। दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने ऐसी सफलताओं के उदाहरण सामने रखे हैं। इनमें 150 उद्यमी ऐसे हैं, जिन्होंने 100 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार किया है और कुछ का कारोबार तो 500 करोड़ से अधिक का है। आगे की चुनौती उन लाखों युवा दलित उद्यमियों की आकांक्षाओं को दिशा देने की है, जो अभी भी गरीबी में जीवनयापन कर रहे हैं।
अनुसूचित जाति और जनजाति के उद्यमियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, 6.2 करोड़ सूक्ष्म उद्यमों में से केवल 17 प्रतिशत अनुसूचित जाति-जनजाति के उद्यमियों के हैं। एक अन्य सर्वेक्षण से पता चला है कि इन वर्गों के 83 प्रतिशत उद्यमियों ने कोई प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया था और 72 प्रतिशत को व्यवसाय शुरू करने की लागत, जीएसटी अनुपालन और आयात-निर्यात नीतियों के बारे में जानकारी नहीं थी। दलित महिलाओं के लिए स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है। भारतीय दलित अध्ययन संस्थान के एक अध्ययन के अनुसार केवल 12.6 प्रतिशत दलित महिला उद्यमी ही पारंपरिक वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त कर पाती हैं और 68 प्रतिशत को खुद की बाजार तक पहुंच बनाने में भेदभावपूर्ण प्रथाओं और आर्थिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। सरकारी नीतियां और योजनाएं अक्सर सूक्ष्म और लघु उद्यमों की समस्याओं का समाधान नहीं ढूंढ पाती। हालांकि अनुसूचित जाति उद्यम पूंजी निधि योजना रियायती वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रयास करती है। 
इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति हब जैसी पहल इन उद्यमियों को विपणन सहायता, प्रशिक्षण और अन्य संसाधनों के माध्यम से समर्थन प्रदान करती हैं। इन पहलों का उद्देश्य इन वर्गों के उद्यमियों के स्वामित्व वाले सूक्ष्म और लघु उद्यमों से सार्वजनिक खरीद में वृद्धि करना है, जो 2015-16 में 99.37 करोड़ रुपए (0.07%) से बढ़कर 2021-22 में 1,248.23 करोड़ रुपए (0.86%) हो गई है। फिर भी, अनुसूचित जाति-जनजाति उद्यमियों की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए प्रणालीगत बाधाओं को दूर करने के अलावा वास्तविकताओं में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए विभिन्न रणनीतियां बनाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, स्टैंड-अप इंडिया और राज्य स्तरीय अनुसूचित जाति-जनजाति वित्त और विकास निगमों के दलित उद्यमियों को पूंजी सब्सिडी, ब्याज रियायत, कौशल विकास, बाजार तक पहुंच और कानूनी सहायता प्रदान करने के कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी ढंग से लक्षित करने के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाना चाहिए, ताकि इन उद्यमियों की विशिष्ट चुनौतियों का समाधान हो सके। निजी क्षेत्र इनके स्वामित्व वाले व्यवसायों को अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में शामिल करके महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। समन्वित उपायों से ही दलित उद्यमियों के लिए सकारात्मक चक्र स्थापित करने में मदद मिलेगी।

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