मातृभाषा में कौशल विकास और तकनीकी शिक्षा से युवाओं को स्थानीय स्तर पर रोजगार के बेहतर अवसर मिलेंगे। भारत के साथ स्वतंत्र हुए कई देशों ने अपनी मातृभाषा को ज्ञान, विज्ञान और तकनीकी विकास का माध्यम बनाया और आज वे विश्व के विकसित देशों में गिने जाते हैं। जर्मनी, जापान, फ्रांस और इजराइल जैसे देशों ने मातृभाषा को प्राथमिकता दी और विज्ञान, तकनीकी, चिकित्सा और अनुसंधान के क्षेत्र में अपार सफलता हासिल की। इसके विपरीत, भारत में अंग्रेजी को शिक्षा और उच्च अध्ययन का प्रमुख माध्यम बनाया गया, जिससे ज्ञान-विज्ञान के प्रसार में एक दूरी बनी रही। परंतु,अब स्थितियां बदल रही हैं। केंद्र सरकार ने हाल ही बजट में भारतीय भाषाओं और ज्ञान के संवर्धन के लिए जो बजट आवंटन किया गया है, वह भाषा विकास के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा।
सरकार ने स्कूली और उच्चतर शिक्षा के लिए भारतीय भाषाओं में डिजिटल पुस्तकों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए ‘भारतीय भाषा पुस्तक योजना’ की शुरुआत की है। इस पहल का उद्देश्य विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषा में अध्ययन सामग्री प्रदान करना है, जिससे उनकी समझ और सीखने की क्षमता में वृद्धि हो। साथ ही भारतनेट परियोजना के तहत, अगले तीन वर्षों में सभी सरकारी माध्यमिक विद्यालयों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान की जाएगी। इससे विद्यार्थियों को ऑनलाइन शिक्षा सामग्री तक पहुंचने में सुविधा होगी, विशेषकर भारतीय भाषाओं में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करने में। इन पहलों के माध्यम से सरकार भारतीय भाषाओं के विकास और संवर्धन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शा रही है, जिससे मातृभाषा में शिक्षा और ज्ञान के प्रसार को बढ़ावा मिलेगा। मातृभाषा में शिक्षा और वैज्ञानिक विकास से भारत एक सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनने की दिशा में बढ़ रहा है। जब ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी और चिकित्सा को मातृभाषा में विकसित किया जाएगा, तो देश के विकास की गति तेज होगी। यह न केवल सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ करेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता भी बढ़ाएगा। केंद्र सरकार के इस महती प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए समाज और शिक्षाविदों को भी एकजुट होकर कार्य करना चाहिए, जिससे 2047 तक ‘विकसित भारत’ का सपना साकार हो सकेगा।