बजरी माफियाओं के हौंसले बुलन्द
वैसे भी प्रदेश के अधिकांश बांध पांच से छह दशक पुराने है। इन बांधों का निर्माण उस समय की जरूरत के हिसाब से किया गया है। आज इन बांधों के पानी पर कई शहर निर्भर हो गए हैं। ऐसे में इन बांधों का भराव क्षमता बढ़ाने की जरूरत है। जयपुर का रामगढ़ बांध तो दशकों से पानी को तरस रहा है। कई बड़े बांधों से निकली नहरें भी काफी जर्जर हो चुकी है। लम्बे समय से इनकी सार संभाल नहीं हुई है। मरम्मत के लिए मिलने वाला बजट भी ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ साबित हो रहा है। हालत यह है कि टेल क्षेत्र के कई इलाकों में किसान अभी भी पानी का इंतजार कर रहे है।प्रसंगवश : प्रदूषित जल छोड़ने वाली औद्योगिकी इकाइयों पर हो सख्ती
चम्बल और ब्राह्मणी नदी की तरह ही प्रदेश की दूसरी कई बरसाती नदियों की सुध ली जाए तो इनके पानी का सदुपयोग भी किया जा सकता है। बड़ी जरूरत इन जल स्रोतों के पेटे मेें अतिक्रमण हटाने की है। केन्द्र सरकार के ‘कैच द रैन’ अभियान के जल स्त्रोतों का कायाकल्प करने के लिए अभी बहुत-कुछ करना बाकी है। राजस्थान में भी पानी को सहेजने के लिए जहां नए बांध, एनिकट बनाने होंगे, वहीं पुराने बांधों की भी समुचित देखभाल करनी होगी।jaiprakash.singh@epatrika.com