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Opinion : कूटनीतिक उपायों से ही निकलेगी शांति की राह

रूस-यूक्रेन युद्ध तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है। इस संघर्ष ने न केवल दोनों देशों को काफी क्षति पहुंचाई है, बल्कि इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक संतुलन पर भी गंभीर असर पड़ा है। हजारों निर्दोष नागरिकों की मौत हो चुकी है और लाखों विस्थापित हुए हैं। इतना ही नहीं, इस युद्ध ने तेल और […]

जयपुरFeb 10, 2025 / 10:02 pm

Veejay Chaudhary

रूस-यूक्रेन युद्ध तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है। इस संघर्ष ने न केवल दोनों देशों को काफी क्षति पहुंचाई है, बल्कि इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक संतुलन पर भी गंभीर असर पड़ा है। हजारों निर्दोष नागरिकों की मौत हो चुकी है और लाखों विस्थापित हुए हैं। इतना ही नहीं, इस युद्ध ने तेल और गैस की कीमतों को अस्थिर कर दिया है, जिससे महंगाई बढ़ी और आर्थिक अस्थिरता गहराई। रूस ने इस संघर्ष को अपनी सुरक्षा आवश्यकताओं और नाटो के विस्तार के प्रतिरोध में उठाया कदम बताया। वहीं, यूके्रन को पश्चिमी देशों का व्यापक साथ मिला है। इसने यूक्रेन को लंबी लड़ाई के लिए सक्षम बनाया। हाल के दिनों में शांति वार्ताओं की संभावनाएं उभरती दिख रही हैं। अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि वे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से शांति बहाली की बात कर रहे हैं। उनके अनुसार, पुतिन भी अब इस युद्ध को समाप्त करना चाहते हैं। हालांकि अभी तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है। रूस ने 2024 में आंशिक शांति वार्ता के संकेत दिए मगर यूक्रेन अपने सभी क्षेत्रों की वापसी से कम पर समझौता करने को तैयार नहीं है।
अमरीका और यूरोपीय देशों द्वारा यूक्रेन को दी जा रही अरबों डॉलर की सैन्य सहायता ने इस संघर्ष को लंबा खींच दिया है। इतना ही नहीं, पश्चिम एशिया में इजराइल-हमास संघर्ष ने क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ाया है और इससे आतंकवाद के पुनजीर्वित होने की आशंका भी बढ़ी है। वहीं, चीन-ताइवान तनाव वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग को गहरे संकट में डाल सकता है, क्योंकि ताइवान इस क्षेत्र का प्रमुख उत्पादक है। आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान, ऊर्जा और खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि, मुद्रास्फीति की दर में उछाल और निवेशकों के विश्वास में गिरावट जैसी चुनौतियां सामने आई हैं। विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए ये प्रभाव और भी अधिक घातक साबित हो सकते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध ने भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित किया है, जो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर हैं। इन संघर्षों के समाधान के लिए कूटनीतिक प्रयासों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सैन्य समाधान केवल विध्वंस को आमंत्रित करता है, स्थायी समाधान नहीं। वैश्विक ताकतों को केवल हथियारों की आपूर्ति करने की बजाय, शांति वार्ता को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। दुनिया स्थायी शांति की दिशा में ठोस कदम उठाए तो यह न केवल निर्दोषों की जान बचाने में मददगार होगा बल्कि दुनिया की आर्थिक स्थिरता की ओर भी अहम कदम होगा।

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