Opinion : घुसपैठ की रोकथाम पर बड़ा फैसला लेने का वक्त
अमरीकी प्रशासन ने अवैध प्रवासियों को अपने-अपने देशों में भेजना शुरू कर दिया है। देखा जाए तो अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों की समस्या केवल अमरीका की ही नहीं बल्कि भारत समेत दूसरे कई देशों की है। भारत के कई राज्यों में तो बांग्लादेशी घुसपैठिए परेशानी का सबब बन गए हैं। भारत-बांग्लादेश की सीमा […]
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अमरीकी प्रशासन ने अवैध प्रवासियों को अपने-अपने देशों में भेजना शुरू कर दिया है। देखा जाए तो अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों की समस्या केवल अमरीका की ही नहीं बल्कि भारत समेत दूसरे कई देशों की है। भारत के कई राज्यों में तो बांग्लादेशी घुसपैठिए परेशानी का सबब बन गए हैं। भारत-बांग्लादेश की सीमा 4,096 किलोमीटर लंबी है। सीमा को पूरी तरह से सुरक्षित इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसमें से 864 किलोमीटर सीमा पर अभी तक बाड़ नहीं लगाई जा सकी है। ऐसे में सीमा पार से घुसपैठियों को रोकना बड़ी चुनौती है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआइएसएस) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बांग्लादेश और म्यांमार से हो रहे अवैध प्रवासन ने राजधानी दिल्ली की डेमोग्राफी को काफी हद तक बदल दिया है। यहां तक कि ये घुसपैठिए चुनावी प्रक्रिया तक को प्रभावित कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा और असम से भी ऐसी रिपोर्ट सामने आई थीं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल करीब 3 लाख बांग्लादेशी घुसपैठ करते हैं। घुसपैठियों की समस्या को केवल राजनीतिक ही नहीं समझा जा सकता। ये राज्यों के संसाधनों पर भार डालने वाले भी होते हैं।
आतंकी घटनाएं भी पड़ोसी देशों की शह पर सीमा पार से आने वाले घुसपैठियों की ही देन है। अवैध प्रवासियों की कम आय वाली नौकरियों में बढ़ती भागीदारी ने स्थानीय स्तर पर अन्यायपूर्ण आर्थिक प्रतिस्पद्र्धा शुरू कर दी है। ये आपराधिक गतिविधियों में भी लिप्त पाए गए हैं। यह सब जारी रहा तो सामाजिक संघर्ष के हालात बनते देर नहीं लगने वाली। घुसपैठिए देश की अर्थव्यवस्था, राजनीति, समाज और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बनते नजर आ रहे हैं। खतरनाक स्थिति यह है कि राजनीतिक दलों के समर्थन से घुसपैठिए मतदाता सूचियों तक में नाम जुड़वाने में सफल हो रहे हैं। ताजा खुलासों व साक्ष्यों से साफ है कि देश में सुनियोजित रूप से घुसपैठियों को भारतीय नागरिकता दिलाई जा रही है। सीमाओं की सुरक्षा केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है, ऐसे में राज्यों के साथ तालमेल बैठाते हुए इस समस्या का स्थायी हल ढूंढने की जरूरत है। राज्य सरकारों, खासतौर पर बॉर्डर से सटे राज्यों की पुलिस और जिला प्रशासन को घुसपैठियों को पकडऩे और फर्जी पहचान पत्र बनाने वालों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इसे लेकर देश में आइडेंटिफिकेशन ड्राइव चलाने की जरूरत है। राजनीतिक दलों को भी एकजुट होकर समाधान की ओर बढऩा चाहिए। घुसपैठ की रोकथाम के लिए यह बड़ा फैसला लेने का वक्त है।
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