script‘डिजिटल डिटॉक्स’ की मुहिम से दूर होंगी सामाजिक समस्याएं | Social problems will be eliminated by the campaign of 'digital detox' | Patrika News
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‘डिजिटल डिटॉक्स’ की मुहिम से दूर होंगी सामाजिक समस्याएं

डॉ. मोनिका शर्मा, स्वतंत्र लेखिका

जयपुरFeb 23, 2025 / 06:54 pm

Sanjeev Mathur

किसी भी सकारात्मक कार्य को करने के लिए साझा मुहिम की दरकार होती है। मिल-जुलकर की गई कोशिशें ना केवल समग्र परिवेश की भागीदारी सुनिश्चित करती हैं बल्कि सफल भी होती हैं। तकनीक के लती बनते बच्चों-बड़ों के बढ़ते आंकड़ों के चलते डिजिटल उपवास के मोर्चे पर भी अब मिलकर कदम उठाने की स्थितियां बन गई हैं। बीते दिनों महाराष्ट्र के सांगली जिले के एक गांव के लोगों ने स्क्रीन से दूरी बनाने को लेकर एक सार्थक पहल की शुरुआत की है। डिजिटल डिटॉक्स के माध्यम से स्क्रीन समय घटाने की राह चुनी है। गौरतलब है कि मोहित्यांचे वडगांव गांव में प्रतिदिन शाम 7 बजे सायरन के बजते ही लोग स्मार्ट फोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बंद कर देते हैं। तकनीक के नियत और सधे इस्तेमाल की यह मुहिम सचमुच महत्त्वपूर्ण है। सामाजिक मेलजोल को बढ़ावा देने डिजिटल गतिविधियों में बीत रहे असीमित समय से बढ़तीं स्वास्थ्य समस्याओं से बचाने वाली है।
भारत ही नहीं, दुनिया के हर हिस्से में बसे लोगों के जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं जो वर्चुअल व्यस्तता के दुष्प्रभाव से बचा हो। लोग तकनीक के इस जाल में फंसकर अपनों से दूर हो रहे हैं। अपने आप को खो रहे हैं। क्लिक-क्लिक की धुन में जीवन की सहजता भुला बैठे हैं। स्क्रीन पर हर पल कुछ ना कुछ देखते हुए अपने परिवेश से कट रहे हैं। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और वाट्सएप जैसे वर्चुअल माध्यमों पर आभासी जुड़ाव के फेर में लंबा समय बीत जाता है। नतीजतन, देश-दुनिया में डिजिटल डिटॉक्स से जुड़ीं मुहिम देखने को मिल रही हैं। हाल ही आइसलैंडिक शैली का दही बनाने वाले अमेरिकी ब्रैंड, सिग्गी ने भी एक चकित करने वाली प्रतियोगिता आयोजित की थी। सिग्गी की प्रतियोगिता का नाम ही ‘डिजिटल डिटॉक्स प्रोग्राम’ था। इसमें प्रतियोगी को एक महीने के लिए अपने मोबाइल फोन से पूरी तरह से दूरी बनानी थी। अपने इस डिजिटल ब्रेक के बदले में विजेताओं को मोटी इनाम राशि देने की बात भी कही थी। डिजिटल डिटॉक्स से जुड़ी इस प्रतियोगिता में 10 विजेताओं को इनाम में 10000 डॉलर यानि करीब साढ़े आठ लाख रुपए का इनाम दिए जाने की बात भी शामिल थी। वैश्विक स्तर पर आभासी दुनिया से लेकर असल संसार तक तकनीकी माध्यमों से दूरी बनाने या इनके इस्तेमाल को कुछ समय के लिए विराम देने के बहुत से कार्यक्रम चल रहे हैं। तकनीकी व्यस्तता से बचने का पाठ राजस्थान में ब्रह्माकुमारी सिस्टर्स स्कूल और कॉलेजों में भी पढ़ाया जा रहा है। यहां ‘डिजिटल डिटॉक्स हेल्थ एंड अवेयरनेस और सेल्फ एम्पावरमेंट टू डिजिटल डिटॉक्स’ जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। कर्नाटक सरकार भी गेमिंग और सोशल मीडिया के सधे इस्तेमाल की सजगता के लिए इंडिया गेम डवलपर्स फोरम के साथ डिजिटल डिटॉक्स पहल कर चुकी है। वस्तुत:, लोगों को जोडऩे के मोर्चे पर जीवन का हिस्सा बनी तकनीक अब दूरियां बढ़ाने लगी हैं। स्मार्ट स्क्रीन मित्रों, परिजनों और सगे-संबंधियों को दिया जाने वाला समय चुरा रही है। सोशल मीडिया से दूरी ‘फीयर ऑफ मिसिंग आउट’ यानी फोमो की एंग्जाइटी बढ़ाता है। बच्चों के लिए तो स्क्रीन के संसार में गुम रहना स्वास्थ्य, शिक्षा और सोच-समझ के मोर्चे पर अनगिनत जोखिम लिए है। कुछ समय पहले आई यूनेस्को की ‘टेक्नोलॉजी इन एजुकेशन’ रिपोर्ट के मुताबिक टेक्नोलॉजी से हद से ज्यादा जुड़े रहना, विशेष रूप से स्मार्टफोन के इस्तेमाल की अति से बच्चों के प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। रिपोर्ट में शामिल मूल्यांकन के आंकड़े बताते हैं कि हरदम मोबाइल पास होने से विद्यार्थियों का ध्यान भटकता है, सीखने की क्षमता पर दुष्प्रभाव पड़ता है। स्मार्ट फोन में आने वाले नोटिफिकेशन ही नहीं, मोबाइल के पास होने मात्र से भी ध्यान भटकने की स्थिति बन जाती है। यूनेस्को की इस रिपोर्ट में सभी देशों से सावधानी पूर्वक विचार करने और स्कूलों में टेक्नोलॉजी का सार्थक ढंग से इस्तेमाल करने का आग्रह किया है। दरअसल, तकनीकी व्यस्तता हर आयु वर्ग को दिशाहीन कर रही है। पल-पल अवतरित होते दूसरों के अपडेट्स देखकर हर उम्र के लोगों को महसूस होता है कि वे किसी ना किसी मोर्चे पर पीछे छूट रहे हैं। साथ ही वर्चुअल व्यस्तता का असर आपराधिक घटनाओं की लिप्तता से लेकर सामाजिक जीवन में बढ़ते अकेलेपन तक दिखने भी लगा है। निस्संदेह, साझे प्रयास ही लोगों को इस जाल से निकाल सकते हैं। वर्तमान में तनाव, व्यग्रता और पोस्चर से जुड़ी समस्याओं का एक कारण स्मार्ट स्क्रीन स्क्रॉलिंग भी है। इतना ही नहीं, रात को बिस्तर पर जाने के बाद भी घंटों स्मार्ट स्क्रीन में ताकना नींद की कमी और आंखों से जुड़ी व्याधियों को बढ़ा रहा है। दुनियाभर की अपडेट्स देखते रहना मन को अशांत कर मानसिक तनाव का शिकार बनाता है। डिजिटल डिटॉक्स के माध्यम से तकनीक का सधा इस्तेमाल ही इससे बचने का मार्ग है। स्वास्थ्य समस्याओं के चलते कई देशों में तो महंगी फीस चुकाकर डिजिटल डिटॉक्सिंग सेवाएं ली जा रही हैं। ऐसे में सामाजिकता के सार्थक भाव संग स्क्रीन के बजाय वास्तविक संसार से जुड़ाव की यह पहल बहुत महत्त्वपूर्ण है।

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