बोर्ड के फरमान ने बढ़ाई परीक्षा दे रहे बच्चों की उलझन
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सरकारी फरमान भी कई बार बिना सोचे—समझे जारी हो जाते हैं। ऐसे- ऐसे फरमान जिनकी पालना व्यावहारिक रूप से संभव शायद ही हो पाए। ऐसे ही गफलत भरे एक आदेश से राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षाओं में बैठने वाले विद्यार्थी असमंजस में हैं। बोर्ड ने परीक्षार्थियों को विद्यालय गणवेश में परीक्षा केन्द्रों तक आने के लिए कह दिया है। हकीकत यह है कि शिक्षा सत्र को पूरे नौ माह बीत जाने के बावजूद सरकारी स्कूलों में न तो बच्चों को यूनिफॉर्म मिली है और न ही इसके लिए पैसे। संस्था प्रधान परीक्षाओं के आधे- अधूरे इंतजामों से पहले ही हैरान- परेशान हैं। सवाल उठ रहे हैं कि जब स्कूली बच्चे पूरे सत्र के दौरान बिना यूनिफॉर्म के पढ़ाई कर चुके तो अब परीक्षा देने के लिए उन पर इस तरह की पाबंदी आखिर क्यों लगाई जा रही है? ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि किसी भी स्तर की परीक्षा तो बच्चे के बौद्धिक स्तर का मूल्यांकन मात्र है। उसने साल भर में क्या पढ़ा और सीखा यह जांचने का पैमाना भर है। ऐसे में यूनिफॉर्म की बाध्यता का फरमान नया संकट खड़ा कर रहा है।
सब जानते हैं कि सरकारी स्कूलों में पहले ही मध्यम व निम्न आय वर्ग के बच्चे दाखिला लेते हैं। अभिभावकों पर आर्थिक भार नहीं पड़े इसी मकसद से सरकार नि: शुल्क यूनिफॉर्म जैसी योजनाएं शुरू करती हैं। जब सरकार ही नौ माह में यह तय नहीं कर पाई कि विद्यार्थियों को यूनिफॉर्म देनी है या यूनिफॉर्म के बदले पैसे, तो ऐन वक्त पर विद्याथी अपनी यूनिफॉर्म भला कैसे तैयार करा पाएंगे? एक बार यह मान भी लिया जाए कि शिक्षा बोर्ड के निर्देशों की पालना में बच्चे जैसे—तैसे यूनिफॉर्म सिलवा भी लें तो सवाल यह भी है कि बारहवीं कक्षा के विद्यार्थी जो कॉलेज शिक्षा ग्रहण करने वाले हैं उनके लिए इसका भला क्या काम रहने वाला है? बहरहाल, सरकार एवं माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को परीक्षा में यूनिफॉर्म के निर्देशों को स्पष्ट करना चाहिए। स्पष्ट निर्देशों के अभाव में बच्चों में असमंजस बनी रहेगी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि नि:शुल्क गणवेश जैसी योजनाएं सत्र की शुरुआत से ही लागू करनी होगी। वैसे भी सांप गुजर जाने के बाद लकीर पीटने का कोई फायदा नहीं होता। -महेंद्र सिंह शेखावत
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