एक ओर सरकार खेती को लाभ का धंधा बनाने और किसानों को खेती से जुड़ी नई-नई तकनीक और जानकारी उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश में लगातार नए-नए कृषि विज्ञान केंद्रों की स्थापना कर रही है तो दूसरी ओर यहां पर काम करने वाले वैज्ञानिक पिछले पांच माह से वेतन को परेशान हैं। आलम यह है कि यहां पर काम करने वाले मजदूरों को पिछले 16 माह से वेतन नहीं मिला है। ऐसे में अब यहां के हर काम प्रभावित होते दिखाई दे रहे हैं। वैज्ञानिकों की माने तो पांच माह से वेतन न मिलने से वह अपनी ही परेशानियों में घिर गए हैं। कोई अपने वाहन की किस्त नहीं चुका पा रहा है तो किसी को होम लोन की किस्त की ङ्क्षचता सता रही है। वहीं परिवार के अन्य काम भी प्रभावित होते दिखाई दे रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि पिछले एक साल से यहां पर यह परेशानी चल रही है। कभी वेतन कम डाला जा रहा है तो विभिन्न अनुसंधान के लिए मिलने वाली राशि पर भी ब्रेक लगता दिखाई दे रहा है। ऐसे में पिछले दो सालों से यहां पर कोई नया अनुसंधान भी होता नहीं दिखाई दे रहा है। यहीं हाल कृषि महाविद्यालय का है। बजट के अभाव में यहां के वैज्ञानिक भी कोई नया अनुसंधान करने आगे नहीं आ रहे हैं।
तीन साल से खेती हो रही प्रभावित वहीं मजदूरों का वेतन न मिलने के पीछे पिछले तीन माह से यहां पर किए जाने वाले अनुसंधान से पैदा होने वाली फसल का खराब होना भी कारण बताया जा रहा है। कृषि महाविद्यालय की माने तो यहां पर पैदा होने वाले बीज का 50 प्रतिशत शेयर महाविद्यालय को मिलता है, उसी से वेतन दिया जाता था, लेकिन पिछले तीन सालों में मौसम के प्रतिकूल होने से खेती प्रभावित हुई है और अब मजदूरी के लिए भी परेशान होना पड़ रहा है।
इनका कहना है &इस संबंध में कृषि विश्वविद्यालय के डीन से लेकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली तक पत्राचार किया गया है। वेतन न मिलने से तमाम काम प्रभावित हो रहे हैं। पिछले पांच माह से इसके लिए केवल आश्वासन दिया जा रहा है।
– डॉ. बीएस किरार, प्रधान वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़।