देखते हैं मन:स्थिति डॉ वर्मा ने बताया कि होम्योपैथी चिकित्सा सिमिलबस क्याेरंटस सिद्धांत पर आधारित है। अर्थात रोग के लक्षण के अनुरूप निर्धारित दवा से उपचार किया जाता है। इसमें इलाज का आधार रोगी के बीमारी के लक्षण के साथ मानसिक लक्षण भी देखे जाते हैं।
क्रोनिक पेशेंट की भरोसेमंद डॉ वर्मा ने बताया कि इस पद्धति से इलाज कराने के लिए तात्कालिक रोगियों की बजाय क्रॉनिक पेशेंट ज्यादा आते हैं। इस चिकित्सा पद्धति का विशेषता तन के साथ मन को ठीक करने का सामर्थ्य है। जो अन्य किसी पैथी में नहीं है। ऐलोपैथी का इलाज जीवन पर्यंत लेना होता है जबकि होम्योपैथी में रोगी को जीवन काल में ही बीमारी से स्थायी रूप से छुटकारा मिल जाता है।
कई असाध्य रोगों का उपचार किडनी स्टोन, सेरिब्रल पाल्सी, एंग्जाइटी, डिप्रेशन, मानसिक रोग, उदर रोग, डायबिटीज, त्वचा रोग सोराईसिस, सिजोफ्रेनिया। मरीजों के सेंसेशन दुरुस्त करने की क्षमता है। इसी प्रकार शरीर के किसी प्रकार के मेटाबॉलिज्म डिसआर्डर बीपी, शूगर, कोलेस्ट्रॉल, थायराइड आदि बीमारियों को ठीक किया जाता है।
शूगर बॉल्स केवल मीठी गोलियां नहीं डॉ वर्मा ने बताया कि होम्योपैथी की दवाओं को मात्र मीठी गोलियां न समझा जाए। यहां मरीजों को दवा की मात्रा नहीं गुण दिए जाते हैं। लिक्विड, सिरप व अर्क रूप में दवाओं को बिना किसी पीड़ा के शूगर बॉल के माध्यम से शरीर में पहूंचाया जाता है। दवाओं को तैयार करने में पशु, वनस्पति, खनिज, नौसोट, सारकोट (एंटी बॉडीज विकसित कर) व इंपोड्रेबिलिया यानि प्रकृति के अनुसार मून या सन के माध्यम से दवाएं तैयार की जाती हैं।
इन चिकित्सकों ने दी सेवाएं शिविर में तीनों दिन डॉ गरिमा शर्मा, डॉ अनूप कुलश्रेष्ठ, डॉ निकिता डांगी, डॉ गौतम शर्मा,डॉ एश्वर्या सौरल,डॉ रामकृपाल, डॉ जया शेखावत व डॉ मधुबाला रजक ने सेवाएं दीं।