वाकर अली और भगवती पिछले तीन दशकों से पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे थे। भगवती लंबे समय से बीमार थीं और बीमारी के कारण ही उनकी मृत्यु हो गई, जब वाकर अली ने भगवती को दफनाने की तैयारी की, तो उनके मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया। समुदाय के लोगों का कहना था कि भगवती ने वाकर अली से ‘निकाह’ नहीं किया था, इसलिए उन्हें कब्रिस्तान में दफनाया नहीं जा सकता।
मुस्लिम समाज द्वारा कब्रिस्तान में दफनाने से मना किए जाने के बाद, वाकर अली ने मजबूरी में भगवती का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार करने का फैसला किया। इस कार्य में हिंदू समुदाय के लोगों ने वाकर अली की मदद की। भगवती को मुक्तिधाम ले जाया गया और वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया।
वाकर अली मूल रूप से रसूलाबाद थाना क्षेत्र के उसरी विला गांव के रहने वाले हैं, लेकिन पिछले 30 सालों से असेनी में ही रह रहे थे। वाकर अली और भगवती का एक बेटा भी था, जिसकी मृत्यु होने पर उसे कब्रिस्तान में दफनाया गया था। हालांकि, भगवती के मामले में, समुदाय ने निकाह न होने का हवाला देते हुए उन्हें दफनाने की अनुमति नहीं दी।