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इंदौर

लव स्टोरी पर पहले शरमाए फिर बताए दिलचस्प किस्से, देखें कलेक्टर के साथ मजेदार बातचीत

poha with patrika-news today: पोहा विद पत्रिका-न्यूज टुडे ने पोहे जलेबी के साथ शुरू किया शहर की शख्सियतों से बातचीत का सिलसिला…। पहली कड़ी में इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह से बातचीत में न्यूज टुडे के संपादक अनिल कर्मा ने बातों ही बातों में जान लिए कई सीक्रेट्स…। देखें मजेदार बातचीत के प्रमुख अंश:

इंदौरFeb 06, 2025 / 04:25 pm

Manish Gite

poha with patrika-news today

indore collector ashish singh

poha with patrika-news today: इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह ने ‘पोहा विद पत्रिका-न्यूज टुडे’ के तहत न्यूज टुडे टीम के गंभीर प्रश्नों के साथ चुटीले और रोचक सवालों के जवाब अपने अंदाज में दिए। यह संवाद अलग-अलग राउंड में कभी शहर के मुद्दों पर संजीदा रहा तो इसमें कभी ऐसे पल भी आए जब खूब ठहाके लगे। अपने संघर्ष के दिनों को याद कर कलेक्टर भावुक हो गए तो ’12वीं फेल’ फिल्म की तरह के प्रेम-प्रसंग के सवाल पर पहले शरमाए फिर कहानी बताने लगे। वर्तमान पद पर रहते हुए राजनीतिक दबाव के सवाल पर थोड़ा अचकचाए, मगर कहा कि काम करने का मकसद और तरीका सही हो तो कोई राजनीतिक दबाव नहीं रहता।
इंदौर के विकास को लेकर मुख्यमंत्री के जज्बे और झुकाव का खास जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसके चलते उन्हें अतिरिक्त ऊर्जा मिलती है और काम करना आसान हो जाता है। कलेक्टर आशीष सिंह ने कहा कि इंदौर में उनका यह तीसरा कार्यकाल है। ऐसे में वे खालिस इंदौरी हो गए हैं।

इंदौर को हम कहां ले जा रहे हैं? कोई दिशा समझ नहीं आती। गुंडागर्दी है, जमीन माफिया है, ट्रेफिक बेहद खराब है…ऐसे में हमारे विकास के मानक क्या हैं? दिशा क्या है?

बढ़ते शहर के साथ में कुछ बुराइयां पनपती हैं। बेशक ट्रेफिक बहुत चिंता वाली बात है, लेकिन इस पर लगातार काम कर रहे हैं। सीएम साहब ने भी इस पर निर्देश जारी किए हैं। कुछ लांग टर्म प्लानिंग है, थोड़ा समय लगेगा सड़कों पर असर दिखने में, लेकिन कुछ मिड टर्म और शार्ट टर्म प्लानिंग पर भी काम कर रहे हैं। इंदौर वैसे बहुत सेफ शहर है लेकिन यह सही है कि पिछले दिनों जिस तरह की घटनाएं घटीं, वे ठीक नहीं हैं। लॉ एंड आर्डर को ठीक किए बिना हम सही अर्थों में बड़ा या सभ्य शहर नहीं बन पाएंगे। ग्रीनलैंड और जमीनों के जिस अतक्रिमण की तरफ आप इशारा कर रहे हैं उस पर भी हमारी नजर है। जल्द ही एक्शन देखने को मिलेगा। अगर सब कुछ ठीक तरह से चला तो अगले कुछ सालों में बंग्लौर या पुणे जैसे शहरों की बराबरी में खड़े होंगे, यह आप भरोसा रखिए।

इंदौर के प्रभारी मंत्री खुद मुख्यमंत्री हैं। दो-दो कद्दावर मंत्री है, विधायकों में बनती नहीं है….ऐसे में आप पर कितना पॉलिटिकल प्रेशर रहता है?

नहीं…. पॉलिटिकल प्रेशर जैसी तो कोई बात नहीं है। सीएम साहब इंदौर को लेकर हमेशा बहुत सकारात्मक रहते हैं। यहां के जनप्रतिनिधि भी शहर के विकास की बात आने पर आम तौर पर एक हो जाते हैं। मेरा मानना है कि शहर को लेकर योजनाओं को ठीक से तैयार किया जाए, मुद्दों पर ठीक से संवाद बनाया जाए तो कोई राजनीतिक बाधा बीच में नहीं आती और सबका सहयोग मिलता है।

आईएएस बनना इच्छा थी, सपना था या जिद थी..?

सपना तो पेरेंट्स का था जो मैंने बाद में उधार लिया। पिताजी टीचर थे…आईएएस का मतलब उनके लिए डीएम होता था। कहते थे कि तुम्हें डीएम बनना है। थोड़े बड़े हुए तो खुद को बेस्ट साबित करना आदत में आ गया था । हार्ड वर्क से ही आप काबिल हो सकते हैं। जीवन में यही ध्येय वाक्य बनाए रखा।

कितना और कैसा संघर्ष रहा?

पीछे पलट कर देखते हैं तो उत्तर प्रदेश के अपने ‘धूल-धुसरित गांव माटी’ में बीता बचपन याद आ जाता है। जब गांव के स्कूल में पांचवी और छठी क्लास में पढा करते थे, तब टीवी तो नहीं था, मगर रेडियो सुना जाता था। मुझे बीबीसी पर रोज सुबह आने वाला ‘कल, आज और कल’ जैसा कार्यक्रम सुनकर विश्व को देखने का एक अलग नजरिया मिला। तब अखबार भी सिर्फ संडे को ही आता था और पूरे 7 दिन तक पढ़ा जाता था। ‘गोधुलि’ में शाम का अंधेरा होने पर ‘कंडिल’ का कांच साफ कर जलाना और नींद आने तक पढ़ाई करते थे।

12वीं फेलः क्या उसी तरह का कोई लव-एंगल भी रहा?

मुस्कुराते हुए बोले ….सब बातें कैमरे पर नहीं कही जाती….दरअसल व्यक्ति की बढ़ती उम्र के साथ उसके जीवन में कई चीजें होती है, बदलाव और भाव भी आते हैं। प्रेम भी परवान चढ़ता है। सामान्य व्यक्ति की तरह मेरे जीवन में भी यह सब रहा। मेरी लव मैरिज है। बालाघाट में एसडीएम बतौर पदस्थ था और वहीं पर सेंट्रल गवर्नमेंट की योजना के तहत फैलोशिप कर रही ‘भावी जीवनसाथी’ से बातें-मुलाकातें हुई और आज हम पति-पत्नी हैं।

कोई ऐसा काम जो इंदौर में आप करना चाहते थे, मगर कर नहीं पाए अब तक?

निगम कमिश्नर रहते हुए कोशिश की थी कि इंदौर में नदी शुद्धिकरण की योजना पर काम किया जाए। इंदौर में 35 किलोमीटर में बहती नदी के शुद्धिकरण की दिशा में पूरा काम अब तक नहीं कर पाए हैं, लेकिन वह मेरी प्राथमिकताओं में है और उसे अंजाम तक ले जाएंगे।

रैपिड फायर राउंड में हुए रोचक सवाल-जवाब

-इंदौर, उज्जैन और भोपाल में से सबसे अच्छा कौन सा शहर लगा?
तीनों शहरों की अपनी खासियत है। भोपाल झील की नगरी है तो उज्जैन धर्म की नगरी। इंदौर की अपनी अलग ही पहचान है।
-अपने बच्चों को क्या बनना चाहते हैं?
बच्चों को खुद तय करना चाहिए। मैं सिर्फ यह सिखाता हूं कि ढ़ाई अच्छे से करें, मेहनत से करें..फिर जो चाहेंगे कर पाएंगे।

-ऐसी जगह जहां घूमने की इच्छा है, पर अभी तक जा नहीं जा पाए ?
बहुत इच्छा रही कि भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण नार्वे में जैसा आसमान में प्राकृतिक खूबसूरत लाइटिंग सा नजारा होता है, वहां और विश्व की वैसी ही जगहों पर घूमा जाए।
-आपको गुस्सा किस बात पर आता है ?
मुझे गुस्सा कम आता है। कोशिश करता हूं कि काम प्रेम से हो जाए।

क्या खाना पसंद है …और क्या पकाना?
(खिलखिलाते हुए..) अरे अभी तो आप ही को पका रहा हूं…वैसे मुझे खिचड़ी और आमलेट बनाना आता है। खाने में अंडा पसंद है..और इंदौरी पोहा तो है ही।
कलेक्टर होना सार्थक लगता है आपको ?
यह एक सर्विस है, जहां रहते हुए जन कल्याण कर सकते हैं, भला कर सकते हैं। ऐसी फ्रीडम और कहीं नहीं होता। मैं इसमें आत्मसंतुष्टि पाता हूं।

फुर्सत के लम्हों में या वीकेंड पर क्या करते हैं?
किताबें पढ़ने का शौक है। खासतौर से नान-फिक्शन। ज्योग्राफी या टेक्नीक से जुड़ी किताबें। उर्दू शायरी और कविताएं सुनने का शौक है।
ज्योतिष पर कितना भरोसा करते हैं ?
ज्योतिष का अपना लॉजिक है। पर ज्योतिष के कारण कर्म से भरोसा न उठ जाए, इसका भी ध्यान रखना जरूरी है।

फील्ड में तो आप बॉस होते हैं, घर पहुंचते हैं तो बॉस कौन ?
(ठहाका लगाते हुए..) ये हम सब विवाहित जानते हैं …।
प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को कैसे मैनेज करते हैं ?
मुश्किल होता है। फिर भी मैं बहुत खुशनसीब हूं कि जीवनसाथी से अच्छा समन्वय है।

फिल्में कौन सी पसंद है? किसी हीरोइन पर क्रश हुए क्या ?
(खिलखिलाहट के साथ) एक हो तो बताएं..जिसकी मूवी देखी उसी पर हो जाते थे क्रश। मुझे चक दे इंडिया फिल्म बहुत पसंद है। 8-10 बार देखी।

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