सुप्रीम कोर्ट ने बहाल किया पारिवारिक न्यायालय का फैसला
13 अप्रैल, 2017 के उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ पत्नी की अपील को स्वीकार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 26 जुलाई, 2012 को पारिवारिक न्यायालय द्वारा दिए गए भरण-पोषण को बहाल कर दिया। न्यायमूर्ति शर्मा ने फैसले में लिखा कि तलाक का औपचारिक आदेश जरूरी नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि महिला और उसके पहले पति के बीच आपसी सहमति से अलग होने का निर्णय लिया गया है, तो कानूनी तलाक न होने के बावजूद वह अपने दूसरे पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है।
भरण-पोषण देने से नहीं कर सकते इनकार
पीठ ने कहा कि जब धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण के सामाजिक न्याय उद्देश्य को इस मामले की विशेष परिस्थितियों में ध्यान में रखा जाता है, तो अच्छे विवेक से हम पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार नहीं कर सकते। अदालत ने यह भी कहा कि सामाजिक कल्याण से जुड़ी प्रावधानों को व्यापक और लाभकारी तरीके से समझा जाना चाहिए और इसे भरण-पोषण के मामलों में भी लागू किया गया है। संक्षेप में कहें तो, अपीलकर्ता संख्या 1 ने अपने पहले पति से औपचारिक तलाक न मिलने के बावजूद प्रतिवादी (दूसरे पति) से विवाह किया था। प्रतिवादी को अपीलकर्ता संख्या 1 की पहली शादी के बारे में पता था। दंपति साथ रहते थे, उनका एक बच्चा था और बाद में वैवाहिक विवादों के कारण वे अलग हो गए। अपीलकर्ता संख्या 1 ने तब धारा 125 Cr.P.C के तहत भरण-पोषण की मांग की, जिसे शुरू में पारिवारिक न्यायालय ने मंजूर कर लिया था, लेकिन बाद में उच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया क्योंकि उसकी शादी पहली शादी के अस्तित्व के कारण अमान्य थी क्योंकि यह कानूनी रूप से भंग नहीं हुई थी।