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डॉलर ही नहीं, पौंड, यूरो, येन के मुक़ाबले भी कमजोर हो रहा रुपया, जानिए मनमोहन और मोदी राज में कितना गिरा रुपया?

Narendra Modi: रुपए की गिरती कीमत को लेकर विपक्ष सरकार पर वैसे ही हमलावर है, जैसे 2014 से पहले भाजपा यूपीए सरकार पर हुआ करती थी।

भारतFeb 06, 2025 / 10:56 am

Vijay Kumar Jha

डॉलर के मुक़ाबले रुपए की कमजोरी हाल के दिनों में लगातार बढ़ती ही जा रही है। डॉलर ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश पौंड, यूरो और येन के मुक़ाबले भी रुपया कमजोर हो रहा है। 15 जनवरी और 4 फरवरी के बीच ही नजर डालें तो नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के आंकड़े के मुताबिक इस दौरान रुपया ब्रिटिश पॉन्ड के मुक़ाबले सबसे ज्यादा कमजोर हुआ है।
15 जनवरी, 2025 को एक पौंड 105.56 रुपए का था, जो 4 फरवरी को 108 रुपए का हो गया। इस दौरान रुपया डॉलर के मुक़ाबले करीब 62 पैसे और यूरो के मुक़ाबले करीब 63 पैसे गिरा। कई अन्य विदेशी मुद्रा की तुलना में रुपया कमजोर हुआ है।

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Indian Rupee Symbol

विपक्ष हमलावर, पर सरकार ने आलोचनाओं को किया खारिज


रुपए की गिरती कीमत को लेकर विपक्ष सरकार पर वैसे ही हमलावर है, जैसे 2014 से पहले भाजपा यूपीए सरकार पर हुआ करती थी। तब भाजपा नेताओं ने इसे ‘राष्ट्रीय शर्म’ तक कह दिया था और मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग की थी। आज विपक्ष के हमलों को सरकार सीधे तौर पर खारिज कर रही है।
सरकार नहीं मानती कि रुपया हर ओर से कमजोर हो रहा है। बजट पेश करने के अगले दिन दिए इंटरव्यू में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा कि रुपए में गिरावट चिंता का कारण है, क्योंकि इससे आयात महंगा हो रहा है। लेकिन वह इस आधार पर की जा रही आलोचनाओं को खारिज करती हैं कि रुपया हर तरफ से कमजोर हो रहा है। वित्त मंत्री ने कहा कि अन्य देशों की मुद्रा की तुलना में भारतीय रुपए की कीमतों में उतार-चढ़ाव कम है।
rupees downfall

ऐसे गिरता गया रुपया

2000 से 2010 के बीच एक डॉलर के मुक़ाबले रुपए की कीमत कुछ खास नहीं बढ़ी थी। इन दस सालों में एक डॉलर की कीमत 44 से 48 रुपए के बीच ही ऊपर नीचे होती रही थी। लेकिन अगले दस सालों में यह उछाल काफी बढ़ गया। 2010 से 2020 के बीच एक डॉलर की कीमत 45 से 76 रुपए के बीच रही। 2004 से 2014 के दस सालों (जब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार रही) एक डॉलर की कीमत 45 से अधिकतम 62 रुपए तक गई थी। 2014 से 2024 की तुलना करें तो 62 से बढ़ते-बढ़ते एक डॉलर की कीमत 83 रुपए पर पहुंच गई। 2025 की शुरुआत में ही यह 87 का आंकड़ा पार कर गया ।

मनमोहन बनाम मोदी राज में रुपए की हालत


मनमोहन और मोदी राज में डॉलर की तुलना में रुपए की हैसियत की तुलना करें तो 2004 से 2014 के बीच जहां एक डॉलर की कीमत 17 रुपए ज्यादा हो गई, वहीं 2014 से 2024 के बीच यह आंकड़ा 21 रुपए रहा। 2004 से 2014 के दौरान तीन साल (2005, 2007 और 2010) ऐसे रहे जब पिछले साल के मुक़ाबले रुपए ने अपनी स्थिति थोड़ी मजबूत की, लेकिन 2014 से 2024 के बीच ऐसा एक बार (2021 में) ही हुआ।
1970 के दशक तक एक डॉलर महज आठ रुपए के बराबर हुआ करता था। 1982 तक एक डॉलर की कीमत दस रुपए से नीचे ही हुआ करती थी। 1991 में इसने 20 का आंकड़ा पार किया और 1998 में ही 40 पार हो गया। 2012 में यह 50 पार (53 रुपए) हुआ और इसके बाद 13वें साल में ही 90 की ओर बढ्ने लगा है। बता दें कि 1991 से 2000 का समय वह था जब भारत ने आर्थिक उदारीकरण के रास्ते पर चलना शुरू किया और दुनिया के लिए अपना बाजार खोला था।

किन बातों पर निर्भर है रुपए की मजबूती


निर्यात: अगर आयात से ज्यादा निर्यात हो, यानि दूसरे देशों से सामान मंगवाने से ज्यादा अपने देश से उनके यहां भेजा जाए तो रुपया मजबूत बनता है।
महंगाई: महंगाई काबू में रहे तो लोगों के पास क्रय शक्ति बनी रहती है और यह रुपए को भी मजबूती देता है।
देश-दुनिया के हालात: राजनीतिक अस्थिरता, देशों के साथ कमजोर संबंध जैसे कारक निवेशकों का भरोसा तोड़ते हैं और करेंसी का मूल्य भी कम करते हैं।
विदेशी निवेश: विदेशी निवेश (एफ़डीआई) के लिहाज से माहौल अनुकूल हो तो मुद्रा भी मजबूत बनी रहती है।

…तब क्या कहते थे भाजपा नेता

जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने कुछ इस अंदाज में रुपए की गिरती कीमत पर तत्कालीन केंद्र सरकार पर हमला बोला था:


नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से करीब दो साल पहले, तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने 24 मई 2012 को कहा था, “समस्या यूरोज़ोन नहीं, यूपीए-ज़ोन है। यह एक लंगड़ी सरकार बन गई है।”
जुलाई, 2013 में रवि शंकर प्रसाद (राज्यसभा में विपक्ष के तत्कालीन उपनेता) ने कहा था कि रुपए के मूल्य में गिरावट ने केवल राष्ट्रीय गर्व को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि यह प्रमाण भी दे रहा है कि भारत की आर्थिक बुनियाद मजबूत नहीं है।
उसी साल सितंबर में वेंकैया नायडू ने रुपए की कमजोरी का समाधान सरकार को भंग कर नया चुनाव कराना बताया था। उन्होंने कहा था कि देश एक लकवाग्रस्त सरकार को नहीं झेल सकता।

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