ग्रीष्मकालीन अवकाश के वक्त तमिलनाडु के ऊटी और कोडैकानल दो ऐसे पहाड़ी क्षेत्र हैं जहां लाखों की संख्या में पर्यटक उमड़ते हैं। इन पर्यटकों में देश के विभिन्न राज्यों के लोग भी शामिल है। कोडैकानल की झील, ब्रायंट पार्क, पाइन फॉरेस्ट, सिल्वर कास्केड यानी जल प्रपात, ग्रीन वैली और सबसे प्रमुख गुणास केव ऐसे आकर्षण हैं जहां दिन ढलने तक हजारों की संख्या में लोग और सैकड़ों पर्यटक वाहन उमड़ते हैं।
उत्तर भारतीय पर्यटक महसूस करते हैं ठगा सा मगर बात पर्यटकों को दी जाने वाली सुविधाओं, सड़क विकास, सरकारी विश्राम गृह या पर्यटक सूचना केंद्र की जाए तो प्रशासन फिसड्डी साबित होता है। विशेषकर, उत्तर भारत से आए पर्यटकों को यहां सही तरीके से ‘गाइडेंस’ नहीं मिल पाता। वे टूर ऑपरेटर के भरोसे होते हैं जो अपनी दाल गलाने में लगे रहते हैं। हालांकि स्थानीय कारोबारी और दुकानदारों की बात करें तो वे हाईकोर्ट की दखल के बाद भी ठीक-ठाक कारोबार कर रहे हैं।
यातायात नियमन और पार्किंग यहां आने वाले पर्यटकों का कहना है कि इतना इम्पोर्टेंट टूरिस्ट डेस्टिनेशन होने के बाद भी सुविधाओं को लेकर अनदेखी निराशाजनक है। सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने को लेकर कोई काम नहीं हुआ है। पर्यटन स्थलों पर सार्वजनिक शौचालयों और पेयजल की व्यवस्था नहीं है। दीगर समस्या पार्किंग की है। वाहन चालक अपनी सुविधानुसार गाड़ी खड़ी कर देते हैं जो जाम को अंजाम देती है। प्लास्टिक पर पाबंदी के बाद भी हर जगह पैकेज्ड प्लास्टिक की थैलियां दिख जाती हैं, जिनको डम्प करने के लिए कूड़ेदान तक नहीं है।
पर्यटकों की सुरक्षा पहलगाम आतंकी हमले के बाद जहां पूरे देश अलर्ट मॉड पर है, वहीं कोडैकानल की पहाड़ी पर इसका रत्ती भर भी असर दिखाई नहीं देता। झील के आस-पास वाली सड़क पर यातायात नियमन करते पुलिसकर्मी अवश्य दिख जाते हैं लेकिन अन्य स्थलों पर सुरक्षा व्यवस्था लगभग नदारद है। आपात हालात में पुलिस तक कैसे पहुंचा जाए इसकी सूचना तक कहीं भी नजर नहीं आती। इस पर सरकार को अवश्य सोचना चाहिए। उल्लेखनीय है कि कोडैकानल के लिए ई-पास अनिवार्य है। मई 2024 से फरवरी 2025 तक 4,76,716 वाहनों ने ई-पास लिया था।
पांच दशकों से नहीं हुआ विकास कोडैकानल लघु व्यापारी संघ के पूर्व अध्यक्ष ए. रविकुमार : पिछले पांच दशकों से तालुक में कोई बड़ा बुनियादी ढांचा विकास नहीं किया गया है। खासकर कई जगहों पर शौचालयों का खराब रखरखाव भी इसके लिए जिम्मेदार है। सड़क को चौड़ा नहीं किया गया, जिससे यातायात में भारी भीड़-भाड़ होती है। यहां की सड़कों से बेहतर पड़ोसी राज्य केरल के पर्वतीय क्षेत्र मुन्नार की हैं।