बच्चों का मन कोमल होता है वे इस स्थिति में नहीं होते हें कि उनके लिए क्या अच्छा या बुरा है ? ऐसे में, सोशल मीडिया का उनके जीवन में अनाधिकार प्रवेश निसंदेह उनका बचपन छीन रहा है। ऐसी सामग्री पर रोक लगनी चाहिए। – गजानन पांडेय , हैदराबाद
बचपन, जीवन का सबसे संवेदनशील समय होता है चूंकि इसी दौरान बच्चों का सामाजिक, शारीरिक और नैतिक विकास तीव्र गति से होता है। सोशल मीडिया चैनल्स पर इनकी बढ़ती उपस्थिति ने इनके विकास की गति को धीमा किया है। बच्चे सबसे अधिक दूसरों की नकल करके सीखते हैं। सोशल मीडिया पर डाले जाने कंटेंट से हम बखूबी वाक़िफ़ हैं, जो सिर्फ़ दिखने- दिखाने के उद्देश्य से परोसा जा रहा है। इसके लिए कोई नैतिकता और सामाजिकता की कसौटी नहीं होती है। बच्चों को इस तरह के कंटेंट से दूर रखना जाना चाहिए। – मोहम्मद ज़ुबैर, कानपुर
बच्चों की सोशल मीडिया चैनल्स पर उपस्थिति उन्हें वास्तविक जीवन से दूर करके वर्चुअल दुनिया में ले जा रही है । जहां दिखावटीपन एवं नकारात्मकता की भरमार है । इससे बच्चों का बचपन तो छिन ही रहा है, उनका मानसिक एवं शारीरिक विकास भी अवरुद्ध हो रहा है। – सर्वजीत अरोड़ा, जयपुर
इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं की सोशल मीडिया के कारण बच्चें अपना बचपन ही भूल गए हैं , किसी जमाने में बच्चे शारीरिक रूप से मेहनत के कई कार्यों में परिवार का हाथ बंटाते और मैदानी खेलों को महत्व देते थे, परन्तु आज चारदीवारी में कैद होकर मोबाइल, इंटरनेट आदि में व्यस्त रहते हैं और शारीरिक गतिविधियां कम होने लगी है जिससे स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है। –संजय डागा हातोद इन्दौर मध्यप्रदेश