संपादकीय : मुंबई बम धमाकों के न्याय की उम्मीद को झटका
मुंबई में वर्ष 2006 के लोकल ट्रेन सीरियल ब्लास्ट के सभी बारह आरोपियों को बरी करने का हाईकोर्ट का फैसला इन धमाकों में हताहतों की न्याय की उम्मीद को करारा झटका है। यह एटीएस और उन सभी एजेंसीज के लिए भी धक्का है कि वे देश को हिला देने वाले इतने संगीन अपराध में किसी […]


मुंबई में वर्ष 2006 के लोकल ट्रेन सीरियल ब्लास्ट के सभी बारह आरोपियों को बरी करने का हाईकोर्ट का फैसला इन धमाकों में हताहतों की न्याय की उम्मीद को करारा झटका है। यह एटीएस और उन सभी एजेंसीज के लिए भी धक्का है कि वे देश को हिला देने वाले इतने संगीन अपराध में किसी को भी दंडित नहीं करा सके। हाईकोर्ट की एक आदर्श न्यायिक प्रक्रिया होती है, जिसमें सामने आए तथ्यों और सबूतों के आधार पर फैसला दिया जाता है। यह एजेंसीज का ही दायित्व है कि वे तथ्य और सबूत कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करें। जो हाईकोर्ट ने कहा है उसके अनुसार एजेंसीज 12 आरोपियों का गुनाह साबित करने योग्य ठोस सबूत पेश नहीं कर सकीं। यह एजेंसीज की बहुत बड़ी नाकामी है। इतने संगीन मामले में उन्होंने कैसे इतनी कमी छोड़ दी? कैसे सभी आरोपियों की यह दलील मंजूर और साबित हो गई कि एटीएस ने उन्हें डरा धमका और मारपीट कर उनसे कबूलनामा लिखवाया था। यहां यह बताना उल्लेखनीय है कि इन 12 आरोपियों में से 5 को निचली अदालत (स्पेशल मकोका कोर्ट) में फांसी और 7 को आजीवन कारावास की सजा मिली थी। एटीएस को इस पर गंभीरता से सोचना होगा कि ऐसी त्रुटियां कैसे रख दी गईं कि हाईकोर्ट में इनका गुनाह साबित नहीं हो सका और सभी आरोपी बरी हो गए। जब इतने गंभीर मामले में ऐसी कमियां रख दी जाती हैं तो अन्य मामलों में क्या होता होगा, आसानी से समझा जा सकता है।
यह इन एजेंसीज पर गंभीर सवालिया निशान है कि सात सीरियल ब्लास्ट में देश को झकझोरने वाली वारदात, जिसमें 189 लोग मारे गए और 824 व्यक्ति घायल हुए, में कोई भी अपराधी नहीं है। ‘नो वन किल्ड जेसिका’ जैसी स्थिति। अत्यंत निराशाजनक और उद्वेलित करने वाली। एजेंसीज ही बताएं कि जब इन्होंने धमाके नहीं किए तो फिर किसने किए, किसने मुंबई में इतनी जानें लीं और देश को अस्थिर किया। ऐसे कारणों से ही एजेंसीज की साख गिरती है और आमजन का उन पर विश्वास और भरोसा नहीं बन पाता है। एजेंसीज को यह समझना होगा और अपनी प्रक्रिया के पथ के उन अवरोधों को दूर करना होगा, जो अपराधियों को सींखचों के पीछे पहुंचाने में बाधक बनते हैं। उन्हें सभी आम भारतीयों की भावनाओं के बारे में भी सोचना चाहिए, जो अभी बहुत आहत हैं। हर कोई न्याय चाहता है और अपराधियों को सूली पर टंगा देखना चाहता है, जो इस मामले में नहीं हो पाया है। एजेंसीज और उनके कर्ताधर्ता अच्छी तरह पुनर्विचार करें और अपनी कार्यप्रणाली की खामियों को गंभीरतापूर्वक दूर करें ताकि कोई अपराधी बच न सके। इस मामले में भी देखा जाए कि जो कमियां रही हैं, उन्हें दूर कर कैसे सुप्रीम कोर्ट में पक्ष को मजबूत किया जा सकता है। कुछ गिरफ्त में नहीं आ सके अपराधियों की धरपकड़ की भी कोशिश नए सिरे से की जानी चाहिए ताकि केस में मजबूती आ सके।
Hindi News / Opinion / संपादकीय : मुंबई बम धमाकों के न्याय की उम्मीद को झटका