राणा प्रताप सागर बांध का निर्माण 1970 में हुआ था। आज 55 साल बाद यह बांध मरम्मत और संरक्षण की मांग कर रहा है। केन्द्रीय जल आयोग और विश्व बैंक के माध्यम से इसकी सुरक्षा को लेकर तीन वर्ष पूर्व ही रिपोर्ट तैयार की जा चुकी, लेकिन सरकारी प्रक्रिया की ढिलाई और तकनीकी प्रावधानों के कारण तीन बार टेंडर निकलने के बावजूद कोई कार्य शुरू नहीं हो पाया।
सबसे खतरनाक बात यह है कि इन बांधों के गेट अब काम नहीं कर पा रहे। स्लूज गेट जर्जर हो चुके हैं, पानी का रिसाव लगातार जारी है और गेटों को उठाने वाली क्रेनें तक चलन से बाहर हो चुकी जिनके पार्ट्स भी उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में यदि कभी अधिक जलभराव की स्थिति उत्पन्न हुई तो इन गेटों के नहीं खुलने से बड़ा हादसा हो सकता है। राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह बांधों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखे। यह केवल एक तकनीकी या इंजीनियरिंग का मामला नहीं, बल्कि मानव जीवन की सुरक्षा से जुड़ा विषय है। यदि इस दिशा में शीघ्र ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो भविष्य में प्राकृतिक आपदा से अधिक, हमारी प्रशासनिक उदासीनता तबाही का कारण बनेगी।
– आशीष जोशी : ashish.joshi@epatrika.com