scriptप्रसंगवश: भारी वर्षा के दौर में प्रशासनिक ढिलाई से टूट रहा है बांधोें का भी सब्र | Kota Editor Ashish Joshi Special Article On 16th July 2025 On Dams In Heavy Rain | Patrika News
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प्रसंगवश: भारी वर्षा के दौर में प्रशासनिक ढिलाई से टूट रहा है बांधोें का भी सब्र

भारी वर्षा के दौर में प्रशासनिक ढिलाई से टूट रहा है बांधोें का भी सब्र। अधिक जलभराव की स्थिति में इन गेटों के न खुलने से बड़ा हादसा हो सकता है।

कोटाJul 21, 2025 / 02:40 pm

Ashish Joshi

Due to heavy rains, three gates of Kota Barrage were opened

Kota Barrage

स ब्र का बांध टूटना पुरानी कहावत है लेकिन राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में भारी बरसात के बाद कई प्रमुख बांधों की सुरक्षा को लेकर जो खबरें आ रहीं है उससे तो लगता है कि प्रशासनिक ढिलाई से बांधों का भी सब्र टूटने लगा है। इसकी बड़ी वजह यह है कि मरुप्रदेश को बारिश के दौरान ही बांध याद आते हैं। बाकी दिनों में ये बिसरा दिए जाते हैं। शायद यही वजह है कि प्रदेश के कई बांधों की सुरक्षा खतरे की जद में है। राजस्थान की जीवनदायिनी चम्बल नदी पर बने राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज जैसे अहम बांध महज सिंचाई, बिजली उत्पादन और जल आपूर्ति के स्रोत नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की सुरक्षा और भविष्य से जुड़े संरचनात्मक स्तंभ भी हैं। इन बांधों की वर्तमान स्थिति चिंताजनक और सरकारी लापरवाही का नायाब उदाहरण बन चुकी है। बांधों की जर्जर होती स्थिति, गेटों में जंग और रिसाव जैसे हालात सुरक्षा और संरक्षा के मोर्चे पर हमारी गंभीर भूल दर्शा रहे हैं।
राणा प्रताप सागर बांध का निर्माण 1970 में हुआ था। आज 55 साल बाद यह बांध मरम्मत और संरक्षण की मांग कर रहा है। केन्द्रीय जल आयोग और विश्व बैंक के माध्यम से इसकी सुरक्षा को लेकर तीन वर्ष पूर्व ही रिपोर्ट तैयार की जा चुकी, लेकिन सरकारी प्रक्रिया की ढिलाई और तकनीकी प्रावधानों के कारण तीन बार टेंडर निकलने के बावजूद कोई कार्य शुरू नहीं हो पाया।
सबसे खतरनाक बात यह है कि इन बांधों के गेट अब काम नहीं कर पा रहे। स्लूज गेट जर्जर हो चुके हैं, पानी का रिसाव लगातार जारी है और गेटों को उठाने वाली क्रेनें तक चलन से बाहर हो चुकी जिनके पार्ट्स भी उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में यदि कभी अधिक जलभराव की स्थिति उत्पन्न हुई तो इन गेटों के नहीं खुलने से बड़ा हादसा हो सकता है। राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह बांधों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखे। यह केवल एक तकनीकी या इंजीनियरिंग का मामला नहीं, बल्कि मानव जीवन की सुरक्षा से जुड़ा विषय है। यदि इस दिशा में शीघ्र ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो भविष्य में प्राकृतिक आपदा से अधिक, हमारी प्रशासनिक उदासीनता तबाही का कारण बनेगी।
– आशीष जोशी : ashish.joshi@epatrika.com

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