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संपादकीय : टीआरएफ को फिर फन उठाने का न मिले मौका

पहलगाम आतंकी हमले के जिम्मेदार द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) को अमरीका ने आखिरकार वैश्विक आतंकी संगठन घोषित कर दिया। यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई मजबूत करने के लिए अमरीका समेत 32 देशों में अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे थे। इन देशों को सबूत के साथ […]

जयपुरJul 21, 2025 / 03:09 pm

Sanjeev Mathur

पहलगाम आतंकी हमले के जिम्मेदार द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) को अमरीका ने आखिरकार वैश्विक आतंकी संगठन घोषित कर दिया। यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई मजबूत करने के लिए अमरीका समेत 32 देशों में अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे थे। इन देशों को सबूत के साथ बताया गया कि टीआरएफ पाकिस्तान प्रायोजित लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन है। संभवत: भारत की यही कवायद इस संगठन के खिलाफ अमरीका के सख्त फैसले का आधार बनी। अमरीका ने इससे पहले 2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को आतंकी संगठन घोषित किया था। पाकिस्तान इन दोनों संगठनों की तरह टीआरएफ को भी भारत के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। विडंबना यह है कि आतंकवाद को समूल नष्ट करने के लिए भारत ‘न दैन्यं न पलायनम्’ का अनुसरण कर रहा है, लेकिन कई देशों ने आतंकवाद पर दोहरी नीति अपना रखी है। इनमें अमरीका भी शामिल है। एक तरफ राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप इस मुद्दे पर भारत के साथ खड़े होने की बात करते हैं, दूसरी तरफ आतंकवाद की नर्सरी चलाने वाले पाकिस्तान को लेकर अपने नरम रुख का इजहार भी करते रहते हैं। अमरीका उसे आइएमएफ से कर्ज भी दिलवाता है और हथियार भी बेचता है।
आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का ढुलमुल रवैया भी हैरान करने वाला है। उसने अब तक टीआरएफ को प्रतिबंधित संगठन घोषित नहीं किया है। हद यह कि पहलगाम हमले के बाद यूएनएससी ने जो बयान जारी किया था, उसमें टीआरएफ का नाम तक नहीं था। कहा जाता है कि पाकिस्तान ने यूएनएससी के अस्थायी सदस्य के तौर पर टीआरएफ का बचाव किया। इस नापाक कोशिश में चीन ने भी उसका साथ दिया। टीआरएफ पर अमरीका की सख्ती के बाद भारत को यूएनएससी में इस संगठन का हुक्का-पानी बंद कराने के कूटनीतिक प्रयास तेज करने चाहिए। पाकिस्तान सरकार, सेना और आतंक के नापाक गठजोड़ पर जब तक सभी देश एकमत नहीं होंगे, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंचेगी। सवाल यह भी है कि जब पाकिस्तान आतंकी संगठनों का खुलेआम समर्थन करता रहता है तो उसे फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट में डालने से परहेज क्यों किया जा रहा है? विशेषज्ञों का कहना है कि अमरीका के ताजा कदम के बाद एफएटीएफ और दूसरी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां टीआरएफ की फंडिंग की जांच करेंगी। अगर साबित हो गया कि टीआरएफ को लश्कर-ए-तैयबा से धन मिल रहा है तो पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाला जा सकता है। भारत को वैश्विक मंचों पर टीआरएफ को बेनकाब करने की मुहिम जारी रखनी चाहिए, ताकि इस संगठन को फिर फन उठाने का मौका न मिले।

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