आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का ढुलमुल रवैया भी हैरान करने वाला है। उसने अब तक टीआरएफ को प्रतिबंधित संगठन घोषित नहीं किया है। हद यह कि पहलगाम हमले के बाद यूएनएससी ने जो बयान जारी किया था, उसमें टीआरएफ का नाम तक नहीं था। कहा जाता है कि पाकिस्तान ने यूएनएससी के अस्थायी सदस्य के तौर पर टीआरएफ का बचाव किया। इस नापाक कोशिश में चीन ने भी उसका साथ दिया। टीआरएफ पर अमरीका की सख्ती के बाद भारत को यूएनएससी में इस संगठन का हुक्का-पानी बंद कराने के कूटनीतिक प्रयास तेज करने चाहिए। पाकिस्तान सरकार, सेना और आतंक के नापाक गठजोड़ पर जब तक सभी देश एकमत नहीं होंगे, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंचेगी। सवाल यह भी है कि जब पाकिस्तान आतंकी संगठनों का खुलेआम समर्थन करता रहता है तो उसे फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट में डालने से परहेज क्यों किया जा रहा है? विशेषज्ञों का कहना है कि अमरीका के ताजा कदम के बाद एफएटीएफ और दूसरी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां टीआरएफ की फंडिंग की जांच करेंगी। अगर साबित हो गया कि टीआरएफ को लश्कर-ए-तैयबा से धन मिल रहा है तो पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाला जा सकता है। भारत को वैश्विक मंचों पर टीआरएफ को बेनकाब करने की मुहिम जारी रखनी चाहिए, ताकि इस संगठन को फिर फन उठाने का मौका न मिले।