आपकी बात : भारतीय सिद्धांत ‘आहार ही औषधि’ को लेकर आपकी क्या राय है?
पाठकों ने इस पर कई जवाब दिए हैं, प्रस्तुत हैं पाठकों की चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।


औषधि हमारे रसोई घर में मौजूद
भारतीय सिद्धांत ‘आहार ही औषधि’ का पालन हमारे बुजुर्ग अक्षरश: करते थे, तभी वे शतायु होते थे। आज के इस आधुनिक युग में एक रोग को खत्म करने के लिए जो दवा लेते हैं उसके साइड इफेक्ट से दूसरा रोग शरीर मे घर कर लेता है। इसलिए औषधि के रूप में आहार को शामिल करने से न तो कोई साइड इफेक्ट होंगे और न ही बीमार पडऩे की कोई गुंजाइश रहेगी। तभी तो हमारा भारतीय सिद्धांत कहता है कि सभी रोगों से लडऩे के लिए औषधि हमारे रसोई घर में मौजूद हैं, बशर्ते उनका सेवन नियमानुसार करने वाला होना चाहिए। – शंकर गिरि, रावतसर, राजस्थान
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अल्प आहार ही औषधि का रूप
भारतीय सिद्धांत के अनुसार अल्प आहार ही औषधि का रूप लेता है जैसे सुबह का नाश्ता राजकुमार जैसा, दोपहर का भोजन राजा जैसा और शाम का भोजन भिखारी जैसा होना चाहिए। सुबह जूस-फल, दोपहर में छाछ-दही, शाम को हल्दी दूध भारतीय सिद्धांत में औषधि ही है। – आनंद सिंह राजावत, देवली कला, ब्यावर, राजस्थान
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असंतुलित जीवनशैली में जरूरी
आज की तेज और असंतुलित जीवनशैली में ‘आहार ही औषधि’ सिद्धांत बेहद जरूरी हो गया है। संतुलित, ताजा और मौसमी भोजन न केवल रोगों से बचाता है, बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। सही समय पर, कम मात्रा में और ध्यानपूर्वक खाया गया भोजन दवा से अधिक असर करता है। स्वस्थ जीवन की शुरुआत थाली से ही होती है। – हंसराज वर्मा (बिलोचिया ) श्रीविजयनगर
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रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ाता है
भारतीय सिद्धांत के अनुसार आहार को ही औषधि माना गया है। “अन्नं हि औषधं श्रेष्ठम्” की भावना हमें सिखाती है कि संतुलित, मौसमी और सात्विक भोजन शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखता है। मसालों, हल्दी, तुलसी, अदरक जैसे तत्वों का उपयोग न केवल स्वाद बढ़ाता है बल्कि रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ाता है। यदि आहार सही हो, तो औषधि की आवश्यकता ही न पड़े, यही भारतीय ज्ञान का सार है। – संजय माकोडे, बैतूल
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फास्ट फूड से बचना चाहिए
भारतीय सिद्धांत “आहार ही औषधि” सौ फीसदी सच्चाई है। यदि हम खान-पान का नियमित ध्यान रखें, पौष्टिक भोजन ग्रहण करें तो यह सुनिश्चित है कि हम बीमार नहीं पड़ेंगे। आयुर्वेदिक औषधियों में प्राय: दवा के साथ खान-पान में परहेज बताए जाते हैं और मरीज को ठीक होने के लिए बताए गए आहार पर ध्यान देना ही पड़ता है। आजकल फास्ट फूड का सेवन ज्यादा होने लगा है। परिणामस्वरूप बीमारियां भी बढऩे लगी हैं, हमें फास्ट फूड से बचना चाहिए। तभी स्वस्थ रह सकेंगे। सत्य है जैसा खाएंगे अन्न वैसा होगा मन। – आजाद पूरण सिंह राजावत, जयपुर, राजस्थान
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जैसा खाओ अन्न, वैसा रहे मन
मोटापा, मधुमेह, ह्रदय रोग, ब्लड प्रेशर आदि में आहार ही संपूर्ण औषधि है। स्वास्थ्य की हॉलिस्टिक अप्रोच में आहार का विशेष महत्त्व है। हमारा रसोई शब्द भी रसायन शब्द से ही बना है। शरीर की इम्युनिटी के लिए आहार ही औषधि है। खून की कमी और हड्डियों को जोडऩे का काम भी पोषण से ही होता है। दिमाग और तंत्रिका तंत्र भी पोषण से ही सही काम कर पाते हैं। शरीर में कहीं भी घाव भरने और पुनरुद्भवन का काम भी पौष्टिक भोजन ही है। पौष्टिक आहार की कमी से बहुत सी बीमारियां हो जाती हैं, उनको आहार से ही दूर किया जा सकता है। शरीर के प्रत्येक कार्य के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, यह ऊर्जा भी हमें भोजन से ही मिलती है। – डॉ. माधव सिंह भामु, श्रीमाधोपुर, सीकर, राजस्थान
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अमरीकी चिकित्सकों ने भी लोहा माना
भारतीय सिद्धांत “आहार ही औषधि” का हाल ही अमरीकी चिकित्सकों ने भी लोहा माना है। अन्य देशों के लिए भले यह नया हो लेकिन हम भारतीय युगों से इस आहार पद्धति को मानते आए हैं, तभी आयुर्वेद में ऋतु और महीनों के अनुसार अलग-अलग अनाज व फल खाने का वर्णन है। न केवल आयुर्वेदिक वैद्य बल्कि ऐलोपैथिक चिकित्सक भी बीमार व्यक्ति को मोटे अनाज और दाल की खिचड़ी खाने की सलाह देते हैं क्योंकि भारत में भोजन को केवल पेट भरने की क्रिया न मानकर आहार को चिकित्सा का एक अंग माना गया है। – शक्ति सिंह चौहान, जोधपुर
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आहार से तन-मन स्वस्थ रहता है
यह सच है कि स्वच्छ और पौष्टिक आहार हमारे तन-मन को स्वस्थ रखता है। फल- सब्जियां शरीर के पाचन व्यवस्था को दुरुस्त रखती हैं, रक्त-निर्माण क्रिया में सहायक होती हैं और मस्तिष्क की कार्य क्षमता को बढ़ाती हैं। पूरी तरह से चबाकर खाया गया भोजन शरीर के लिए वरदान सिद्ध होता है। जो व्यक्ति शांत वातावरण में भोजन को चबा-चबाकर बिना बात किए हुए खाता है, उसके लिए आहार औषधि के समान है। आहार के सेवन का एक निश्चित समय होना भी आवश्यक है। – विभा गुप्ता, बेंगलूरु
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जैसा खाए अन्ना वैसा बने तन और मन
पौष्टिक आहार स्वयं में औषधि है जो तन-मन को हष्ट-पुष्ट और स्वास्थ्य को उत्तम रखता है। धनार्जन की होड़ ने प्राकृतिक पदार्थों से पौष्टिक तत्वों को निकालकर बाजार में आकर्षक पैकेजिंग्स में मात्र स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों की बिक्री को आरंभ किया जो जनता जनार्दन के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। गेहूं को चक्की में पिसवाना, घरों में सब्जियों के पौधे और बेलों को उगाना और शुद्ध स्वादिष्ट व्यंजनों को रसोई में बनाना जब तक होता रहा लोगों को डॉक्टरों के पास कभी-कभी जाना पड़ता था। पैक्ड खाद्य वस्तुएं मिलावटी हैं, धीमा जहर हैं और महंगी दवाओं को आमंत्रण है। – डॉ. मुकेश भटनागर, भिलाई, छत्तीसगढ़
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