क्यों हो रहा विवाद
पटना विश्वविद्यालय (पीयू) में लॉटरी के माध्यम से नियुक्तियों पर सवाल पर विवाद शुरू हो गया है। उनका तर्क है कि गृह विज्ञान की शिक्षिका वाणिज्य संस्थान का प्रबंधन कैसे कर सकती हैं? इसी प्रकार से रसायन विज्ञान के शिक्षक मानविकी और सामाजिक विज्ञान में विशेषज्ञता वाले संस्थान का प्रशासन कैसे चला सकते हैं? इनका तर्क है कि नियुक्ति योग्यता और अनुभव के आधार पर होनी चाहिए। कॉलेजों के प्राचार्य की नियुक्ति अगर भाग्य के आधार पर होने लगा तो योग्य उम्मीदवारों को नुकसान होगा। जो कि प्राचार्य पद के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।
लॉटरी से चुने गए पटना विवि के पांच प्रिंसिपल
लॉटरी सिस्टम के तहत, छपरा के जय प्रकाश विश्वविद्यालय के इतिहास के शिक्षक नागेंद्र प्रसाद वर्मा को पटना के मगध महिला कॉलेज का प्राचार्य चुना गया, जबकि पटना कॉलेज और पटना साइंस कॉलेज जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों को क्रमशः उत्तर प्रदेश के कॉलेज के रसायन विज्ञान के शिक्षक अनिल कुमार और हाजीपुर के महिला कॉलेज की अलका यादव द्वारा नेतृत्व किया जाएगा। मगध महिला कॉलेज की गृह विज्ञान की शिक्षिका सुहेली मेहता को वाणिज्य महाविद्यालय का प्रमुख चुना गया, जबकि पटना लॉ कॉलेज के योगेंद्र कुमार वर्मा संस्थान के प्राचार्य बने।
इसलिए लिया गया लॉटरी वाला फैसला
राज्यपाल-सह-चांसलर आरिफ मोहम्मद खान का तर्क है कि कुछ विश्वविद्यालयों में प्राचार्यों की नियुक्ति में गड़बड़ी के आरोपों के बाद यह फैसला लिया गया है। बीएसयूएससी द्वारा अनुशंसित उम्मीदवारों की पोस्टिंग की निगरानी एक तीन सदस्यीय समिति करेगी, जिसकी अध्यक्षता संबंधित विश्वविद्यालय के वीसी करेंगे। पीयू के पांच कॉलेजों में नियुक्त प्राचार्यों को कुलपति अजय कुमार सिंह, रजिस्ट्रार शालिनी और चांसलर के प्रतिनिधि, रहमत जहान की अध्यक्षता वाली एक समिति करेगी।
पटना यूनिवर्सिटी में पहली बार हुआ ऐसा
पटना यूनिवर्सिटी में 15 वर्षों के बाद विश्वविद्यालय सेवा आयोग द्वारा अनुशंसित प्राचार्य मिलेंगे। सभी पांचों प्राचार्य बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (बीएसयूएससी) की सिफारिशों पर साक्षात्कार और शैक्षणिक योग्यता के आधार पर चुने गए हैं।