जाने इनकी हालत
- पं. दीनदयाल उपाध्याय सर्कल (राजनगर) फव्वारा चौक: इसकी हालत तो ठीक है पर इसे चलाने वाला कोई नहीं है। ना ही यहां पानी की व्यवस्था है। कहने का मतलब इसके िलए काम कौन करे। नगपरिषद की ओर से किसी व्यक्ति को नियुक्त भी नहीं किया गया है।
- मुखर्जी चौराहा (कांकरोली): ये देखने में तो सुंदर और भव्य है लेकिन यहां पर भी पानी चलाने वाला कोई नहीं है। आस-पास के लोगों का कहना है कि काफी समय से ये फव्वारे चलाए ही नहीं गए।
- महात्मा भूरीबाई सर्कल : इस फव्वारे की हालत बेहद खराब है। पानी भरने के लिए बनाई गई दीवार क्षतिग्रस्त है। यहां की गई लाइटिंग भी किसी काम की नहीं है। इसमें सुधार की दरकार है।
राजसमंद झील पेटे के फव्वारे: कोरोना में कटे तार, अब तक नहीं सुधरी स्थिति
झील के पास बनाए गए फव्वारे कभी इस इलाके की शान हुआ करते थे। लोगों को इस क्षेत्र में आकर ठंडी फुहारों के बीच राहत का अनुभव होता था। लेकिन कोरोना काल में बदमाशों ने इन फव्वारों की केबलें काटकर चोरी कर लीं। चौंकाने वाली बात यह है कि इस घटना को दो साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन अब तक नगर परिषद ने इनकी मरम्मत तक नहीं करवाई। शहरवासियों ने कई बार परिषद से शिकायतें की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। इस उपेक्षा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि नागरिक सुविधाओं के प्रति जिम्मेदारी और जवाबदेही पूरी तरह से गायब है।
“नाम बड़े, दर्शन नहीं”
राजसमंद के तीन प्रमुख चौराहों पर भामाशाहों की मदद से फव्वारे लगाए गए। लेकिन विडंबना यह है कि फव्वारा चौराहा के नाम से मशहूर पं. दीनदयाल उपाध्याय सर्कल पर ही फव्वारा नहीं चल रहा है। यह चौराहा आर.के. मार्बल ग्रुप ने गोद लिया था और सुंदर निर्माण कराया गया था, लेकिन अब यह जगह बंद पड़े फव्वारे और उपेक्षा की मिसाल बन गई है। इसी तरह जेके टायर फैक्ट्री के सहयोग से बने मुखर्जी चौराहे के फव्वारे भी बंद पड़े हैं। महात्मा भूरीबाई सर्कल वहां भी स्थिति अलग नहीं है। नगर परिषद ने वहां पर भी सौंदर्यीकरण के नाम पर फव्वारा लगाया था, जो शुरू से ही एक बार भी नियमित रूप से नहीं चला।
‘सौंदर्यीकरण’ या ‘आंखों में धूल’? – लाखों खर्च, लेकिन कोई असर नहीं
नगर परिषद द्वारा शहर के सौंदर्यीकरण के नाम पर अब तक एक करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जा चुके हैं। इन पैसों से पेंटिंग, गार्डनिंग, सजावटी लाइट्स और फव्वारों का निर्माण करवाया गया था। लेकिन हकीकत यह है कि गर्मी के सबसे कठिन समय में एक भी फव्वारा जनता को राहत नहीं दे पा रहा है।
जिम्मेदारों का एक ही जवाब प्रक्रिया में है…
अगर जिम्मेदार अधिकारियों से सवाल पूछे जाएं तो उत्तर होगा कि “प्रक्रिया में है”, “बजट का इंतजार है” या “कंपनी से बात चल रही है”। लेकिन ये जवाब जनता सुनते-सुनते थक चुकी है। या तो नगरपरिषद प्रशासन काम करना नहीं चाह रहा या अधिकारी इन फव्वारों की दुर्दशा को देखकर आंखों पर पट्टी बांधे हुए हैं। लेकिन जनता आज भी राहत का इंतजार कर रही है।
जनता की नाराज़गी: उम्मीदें टूटीं, शिकायतें अनसुनी
राजसमंद शहर के कई नागरिकों का कहना है कि फव्वारों की स्थिति देखकर लगता है कि नगर परिषद ने सिर्फ कागज़ीघोड़ेदौड़ाए हैं। स्थानीय निवासी ने बताया कि “जब झील के पास बने फव्वारे चालू रहते थे तो बच्चे-बूढ़े सब यहां आकर ठंडी हवा और पानी की फुहारों का मज़ा लेते थे। अब ये काफी समय से बंद है। ये सिर्फ लोहे का ढांचा बनकर रह गया हैं।” नगर परिषद सिर्फ फोटो खिंचवाने तक सीमित है। असली ज़रूरत के वक्त ये फव्वारे कोई राहत नहीं दे पा रहे हैं। आयुक्त का नहीं मिला जवाब
इस संबंध में आयुक्त बृजेश रॉय से दो-तीन बार बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उनकी ओर से फोन ही नहीं उठाया गया।
अब उठने लगे ये सवाल
- क्या इन फव्वारों की देखरेख के लिए कोई वार्षिक रख-रखाव बजट निर्धारित नहीं किया गया?
- क्या संबंधित अधिकारियों पर कोई जवाबदेही तय की गई है?
- भामाशाहों की मदद से बने ढांचे की जिम्मेदारी परिषद ने क्यों नहीं ली?
- क्या अधिकारियों ने इनकी एक बार भी सुध ली?