अफीम उत्पादक किसानों ने डोडों में चीरा लगाना शुरू कर दिया है। इससे पहले किसानों ने खेत की मेड़ पर माताजी की मूर्तियों की स्थापना कर शुभ मुहूर्त में विधि-विधान के साथ मां कालका की पूजा अर्चना की। इसके बाद अफीम के डोडों में चीरा लगाया। चीरे के बाद इसका दूध इकट्ठा किया जाएगा।
कुंड़ीखेड़ा के किसान विजय सिह, मांगीलाल व केसर सिंह ने बताया कि खेत मेढ पर माताजी कि स्थापना कर माताजी का आह्वान किया कि अच्छी औसत व गाढ़ता की अफीम दें। फसल को रोग व चोरों से बचाएं और पट्टा किसी भी कारण से नहीं कटे, ऐसी कृपा उन पर बनी रहे।
ऐसे निकालते है अफीम से दूध
किसान सुरेश ने बताया कि सूर्योदय से पहले खेतों में पहुंच कर किसान परिवार के साथ नंगे पांव दूध का संग्रह करता है। अफीम के डोडे की किसान विशेष प्रकार के औजार से चिराई करते हैं। उसके बाद छरपले में अफीम का दूध जो इन डोडो से निकलता है एकत्रित किया जाता है।
तस्कर सक्रिय, खेता में होने लगे सौदे
अफीम के डोडों में चीरे लगाकर दूध निकालने के साथ ही अफीम तस्कर सक्रिय होने लगे हैं। इसके साथ ही अफीम तस्करी की रोकथाम के लिए नारकोटिक्स विभाग भी सक्रिय हो गया है। डोडों से चीरे से निकला दूध ही गाढ़ा होकर अफीम बनता है। सरकारी तुलाई होने तक अफीम किसान के पास ही रहती है। कई किसान तस्करों को बेचने को लेकर तैयार रहते है। वहीं तस्कर भी अफीम की बुवाई के बाद से ही किसानों से संपर्क करना शुरू कर देते हैं और उनको पैशगी देकर सौदा कर लेते हैं।
20 साल से यही भाव
किसानों द्वारा जो अफीम तुलाई जाती है उसे सरकार करीब 1500 से 2000 हजार रुपए प्रति किलो से खरीद करती है। लंबे समय से अफीम का सरकारी भाव यही है। जबकि तस्कर इसे दो लाख रुपए प्रति किलो तक खरीद लेते हैं। भाव का यह बड़ा अंतर तस्करी का मुख्य कारण है।
इनका कहना है…
नारकोटिक्स टीम के द्वारा खेतों में चीरे के साथ ही निगरानी रखना शुरू कर दिया है। मुखबिरों द्वारा भी सूचना एकत्रित की जाती है। तस्करों के खिलाफ हमारे द्वारा समय -समय पर कार्रवाई की जा रही है। महेन्द्र जैन, जिला अफीम अधिकारी, झालवाड़