सूत्रों के अनुसार नागौर (डीडवाना-कुचामन)के स्कूलों में पाउडर के दूध को छात्र-छात्रा नहीं पी रहे। कक्षा पहली से आठवीं तक के बच्चों को यह दूध दिया जा रहा है। कई साल से बार-बार सभी बच्चों को यह दूध पिलाने का दबाव बनाया जाता है। इसके बावजूद चालीस फीसदी से अधिक बच्चे इसे नहीं पीते। कहीं-कहीं ऐसे बच्चों की तादात पचास फीसदी पार है। खास बात यह है कि पाउडर से बने दूध के प्रति बच्चों की अनिच्छा से जिम्मेदार अधिकारी व सरकार तक वाकिफ है।
सूत्र बताते हैं कि नागौर पशु पालन के हिसाब से बड़ा जिला माना जाता है। अधिकांश बच्चों के गांव/घर में दुधारू पशु हैं। ऐसे में वे दूध के प्रति ज्यादा सचेत रहते हैं। पाउडर के दूध की जब स्कूलों में शुरुआत हुई थी तब ही अधिकांश बच्चों ने ही इसे पीने मना कर दिया था। बाद में समझाइश कर जैसे-तैसे छोटे बच्चों को मनाया पर कक्षा छह से आठवीं तक के बच्चे अब भी इससे परहेज कर रहे हैं।
गाय का दूध देने का फैसला ठंडे बस्ते में बताया जाता है कि कुछ समय पहले सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के लिए शिक्षा विभाग ने गौ माता का शुद्ध प्राकृतिक दूध पिलाने की घोषणा की थी। यह भी दावा किया था कि बच्चों के पोषण को ध्यान में रखते हुए विभाग गाय का दूध उपलब्ध करवाएगा। इससे उन बच्चों को भी राहत मिलेगी जो पाउडर के दूध से परहेज करते हैं। इ घोषणा को अब तक लागू नहीं किया गया है।
परहेज के अपने-अपने कारण… इस संबंध में शिक्षकों का कहना था कि पाउडर के नाम से ही अधिकांश बच्चे उसे बेहतर नहीं मानते हैं। वो यह सोचते हैं कि पाउडर के दूध में पोषण/ताकत नहीं होती। अधिकांश बच्चे घर में पल रहे गाय-भैंस का दूध पीते हैं, ऐसे में पाउडर का दूध उन्हें पिलाना संभव नहीं है। कुछ शिक्षक हल्दी अथवा कोई अन्य पाउडर मिलाकर देते हैं।
इनका कहना स्कूल में अधिकांश विद्यार्थी पाउडर का दूध पी लेते हैं। इसके लिए खुशबू व कलर के लिए सेहतमंद पाउडर भी डालते हैं। यह सही बात है कि इसके बिना बच्चे परहेज करते हैं।
-बस्तीराम सांगवा, प्रिंसिपल, राजकीय बालिका उमा. विद्यालय, गिनाणी।…………………..þ यह सही बात है कि बच्चे पाउडर का दूध पीने में आना-कानी करते हैं। इसके लिए वे इलायची/हल्दी मिला देते हैं। करीब चालीस फीसदी बच्चे इसे नहीं पीते हैं।
-पवन मांजू, पिं्रसिपिल, राउमावि गोगेलाव नागौर