भीलवाड़ा समेत प्रदेश में छह हजार बॉल मिले यानी खनिज ग्राइंडिंग इकाइयां है, लेकिन यहां से कच्चे माल की आपूर्ति गुजरात के सेरेमिक टाइल उद्योग में होने से इन बॉल मिलों पर संकट खड़ा हो गया है। प्रदेश की खनिज निर्गमन नीति तथा अरावली पर्वत श्रंखला से सटे डेढ दर्जन जिलों में सोडा फेल्सपार पत्थर को पीसकर उसे पाउडर के रूप में तैयार कर सेरेमिक टाइल इंडस्ट्री के लिए एक्सपोर्ट किया जा रहा है। लेकिन प्रदेश के बाहर लप्स (खनिज कच्चा माल) ले जाने पर कोई पाबंदी नहीं होने से पिछले कुछ सालों से सेरेमिक टाइल उद्यमी इसे सीधे आयात करने लगे हैं। इसका असर प्रोसेस कर पाउडर फॉर्म में निर्यात करने वाले बॉल मिल संचालकों पर पड़ा है। प्रदेश की कई मिलें बंद हो गई है। मिल संचालकों की मांग है कि राज्य सरकार अपने बजट में खनिज निर्गमन नीति में बदलाव कर बाहरी राज्यों को जाने वाले खनिजों पर रॉयल्टी दर छह गुना करती है तो इससे ग्राइंडिंग उद्योग का संकट टल सकता है।
राज्य के इन जिलों में है बॉल मिल प्रदेश के सोडा फेल्सफार खनिज बहुुल क्षेत्रों में लगभग छह हजार बॉल मिलें संचालित हैं। भीलवाड़ा, चित्तौड़, ब्यावर, उदयपुर, राजसमंद, अजमेर,बांसवाड़ा, जयपुर, अलवर, सीकर, कोटपूतली, बीकानेर, हनुमानगढ़, नागौर आदि जिलों की मिलों से लाखों लोगों के परिवार जुड़े हुए हैं। सिर्फ भीलवाड़ा जिले में करीब 350 मिलें संचालित हैं।
मिलें बंद तो राजस्व भी नहीं मिलेगा बॉल मिलों से सरकार को करोड़ों का राजस्व मिलता है। इन्हें बंद होने से नहीं रोका तो सरकार को प्राप्त होने वाले राजस्व भी नहीं मिलेगा। बाहरी राज्यों के लिए रॉयल्टी बढ़ाने से सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी के साथ स्थानीय उद्योग जिंदा होंगे तथा लाखों लोगों को रोजगार भी मिलेगा। फेल्सपार पर 135 रुपए प्रति टन की रॉयल्टी लगती है। 75 रुपए प्रति टन जीएसटी तथा 50 रुपए टन पर सेस सहित अन्य खर्च होता है। जो राज्य सरकार को राजस्व के रूप में प्राप्त हो रहा है।
– शेषकरण शर्मा, अध्यक्ष गंगापुर खनिज उद्योग संघ प्रदेश में बॉल मिलों की स्थिति
- 6000 बॉल मिलें राजस्थान में
- 350 मिलें भीलवाड़ा में
- 60 फीसदी से अधिक मिलें बंद
- 135 रुपए प्रति टन रॉयल्टी
- 75 रुपए प्रति टन जीएसटी
- 50 रुपए प्रति टन सेस सहित अन्य खर्च