100 से अधिक गोवंश
छतरपुर के पन्ना रोड पर स्थित छत्रसाल नगर में स्थित दिव्यानी छत्रसाल नंदी धाम गौशाला पिछले 4 सालों से गायों की सेवा कर रही है। यहां पर महिलाएं स्वयं के खर्चे पर गायों का पालन-पोषण करती हैं। इस गौशाला में वर्तमान समय में 100 से अधिक गोवंश हैं, जिनके खाने-पीने, सोने, और रुकने की व्यवस्था पूरी तरह से इन महिलाओं द्वारा की जाती है। इस समूह में शोभा खरे, भावना अग्रवाल, डॉ. दीप्त शर्मा, सविता अग्रवाल, प्रभा वैद्य और विमलेश नामदेव जैसी महिलाएं शामिल हैं, जो दिन-रात गौशाला में सेवा करती हैं। उनका मानना है कि गायों की सेवा एक पुण्य का कार्य है और इसमें जो शांति मिलती है, वह शब्दों से व्यक्त नहीं की जा सकती। इस कार्य में इन महिलाओं का सहयोग उनके परिवार के सदस्य और शहर के समाजसेवी भी करते हैं। इसके बावजूद, वे किसी सरकारी मदद के बिना ही इस सेवा को निरंतर चलाए हुए हैं।
इ्रन महिलाओं की विशेष भूमिका रही
खाली पड़ी इस गौशाला में गोवंश की सेवा की शुरूआत कोरोना काल में ही मस्लिम महिला मरजीना बानो ने की थी। उनके समर्पण को देखते हुए धीरे-धीरे अन्य लोग भी जुड़ते गए और अब एक बडी टीम इस नेक काम में जुटी हुई है। महाराजपुर की 65 वर्षीय शकुंतला चौरसिया ने अपनी पूरी जिंदगी गायों की सेवा में समर्पित कर दी है। उन्होंने 15 वर्ष की आयु से गोवंश की सेवा शुरू की थी, और आज तक यह सिलसिला जारी है। शकुंतला का मानना है कि उन्हें यह सेवा करने की प्रेरणा उनके माता-पिता से मिली, जिन्होंने हमेशा उन्हें समाजसेवा की महत्वता समझाई। शकुंतला का जीवन बेहद साधारण है और उनका परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है। वे हर दिन सब्जी मंडी में जाती हैं और वहां से खराब हरी सब्जियां एकत्र करती हैं, जो वह गायों को खिलाने के लिए इस्तेमाल करती हैं। उनका कहना है कि गायों को खिलाने के लिए अक्सर वे आसपास के लोगों से चारा कम कीमत में खरीदकर अपने घर पर रख लेती हैं। जब भी गायें बीमार होती हैं, तो वे पशु विभाग के डॉक्टरों से मदद लेती हैं और उन्हें इलाज दिलवाती हैं।
समाज का सहयोग और महिलाओं की प्रेरणा
दिव्यानी छत्रसाल नंदी धाम गौशाला की संचालक महिलाएं कहती हैं कि उनका मुख्य उद्देश्य गायों के लिए एक सुरक्षित और स्वच्छ आश्रय प्रदान करना है। उनका मानना है कि गायों के प्रति हमारी जिम्मेदारी सिर्फ उनका पालन करना ही नहीं, बल्कि उनका सम्मान करना भी है। इस कार्य में समाज से अच्छा सहयोग मिल रहा है, लेकिन फिर भी वे सरकारी मदद की प्रतीक्षा कर रही हैं ताकि उनके काम में और अधिक सुधार किया जा सके।
पत्रिका व्यू
यह महिलाएं हमें यह सिखाती हैं कि अगर किसी कार्य को सच्चे दिल से किया जाए, तो दुनिया की कोई भी ताकत उसे रोक नहीं सकती। छतरपुर शहर की ये महिलाएं अपनी मेहनत और समर्पण से एक मिसाल प्रस्तुत कर रही हैं कि गौसेवा किसी भी प्रकार के पुरस्कार या सरकारी सहायता से बड़ी है। वे इस कार्य के जरिए न केवल गायों को सहारा दे रही हैं, बल्कि समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने की भी कोशिश कर रही हैं। छतरपुर की महिलाएं, जो गौसेवा में पूरी तरह से समर्पित हैं, वास्तव में समाज के लिए एक प्रेरणा का स्रोत हैं। इनका कार्य न केवल गायों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करता है। हमें चाहिए कि हम इन महिलाओं के कार्यों का सम्मान करें और आगे बढकऱ इनके प्रयासों में सहयोग करें, ताकि गायों और अन्य बेसहारा पशुओं की सेवा को आगे बढ़ाया जा सके।