कोरोना काल में इसका आयोजन रुक गया
पहले यह टूर्नामेंट विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा आयोजित किया जाता था, लेकिन बाद में नगरपालिका ने इसकी जिम्मेदारी ले ली थी। कोरोना काल में इसका आयोजन रुक गया और उसके बाद से स्टेडियम में चल रहे निर्माण कार्य के कारण भी टूर्नामेंट का आयोजन नहीं हो सका। अब जबकि कोई बड़ी अड़चन नहीं है, फिर भी इस बार इसके आयोजन को लेकर कोई खास हलचल नहीं दिख रही है।
शिक्षक सुरेंद्रनाथ बनर्जी की याद में शुरू किया गया था
यह टूर्नामेंट वर्ष 1956 में महाराजा महाविद्यालय के शिक्षक सुरेंद्रनाथ बनर्जी की याद में शुरू किया गया था। विजेता टीम को एशिया की सबसे बड़ी शील्ड दी जाती है, जिसे तत्कालीन छतरपुर महाराज ने बनवाया था। इस टूर्नामेंट को छतरपुर के बाबूराम चतुर्वेदी स्टेडियम में आयोजित किया जाता था और इसे देश के फुटबॉल रैंकिंग में 7वां स्थान प्राप्त है। इस टूर्नामेंट की खासियत यह है कि यह एशिया की सबसे बड़ी शील्ड पर कब्जा करने वाला टीम को पुरस्कार के रूप में दिया जाता है, जो लगातार तीन बार फाइनल जीतने वाली टीम को ही मिलती है। तीन पीढिय़ों की यादे जुड़ी एसएन बनर्जी टूर्नामेंट अब तक महाराष्ट्र की टीम द्वारा छह बार जीता गया है। पहले यह टूर्नामेंट ‘मेला जलविहार टूर्नामेंट’ के नाम से जाना जाता था। समय के साथ इसे एसएन बनर्जी टूर्नामेंट के रूप में पहचान मिली। इस आयोजन से छतरपुर की तीन पीढिय़ों की यादें जुड़ी हुई हैं। कई राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी और उद्घोषक इस टूर्नामेंट से निकलकर राष्ट्रीय पहचान बना चुके हैं। हालांकि कोरोना काल के कारण यह टूर्नामेंट बंद हो गया था और पिछले साल भी स्टेडियम में निर्माण कार्य के कारण आयोजन नहीं हो सका, लेकिन इस साल इसे आयोजित करने की योजना बनाई जा सकती है।
ज्योति चौरसिया नगरपालिका अध्यक्ष छतरपुर ने कहा हम इस बार टूर्नामेंट को आयोजित करने का प्रयास करेंगे। लेकिन इस बार भी आयोजन की कोई स्पष्ट योजना नहीं दिख रही है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या 77 साल पुराना यह आयोजन जल्द ही फिर से शुरू होगा या यह छतरपुर की सांस्कृतिक और खेल धरोहर की तरह इतिहास बन जाएगा।