गंगा का उद्गम और प्राचीनता
गंगा नदी की उत्पत्ति हिमालय के गंगोत्री पर्वत से हुई है। जहां से यह भागीरथी नामक नदी के रूप में निकलती है। आगे चलकर अलकनंदा से मिलकर यह गंगा के नाम से प्रसिद्ध होती है। इसका उद्गम करीब 3 से 4 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गंगा पवित्र और पापों नाश करने वाली नदी के रूप में वर्णित है, जो यह दर्शाता है कि यह नदी करोड़ों वर्षों से भारतीय संस्कृति का हिस्सा रही है। जो आज तक निरंतर बह रही है।
भगीरथ और गंगा अवतरण की कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सूर्यवंशी राजा सगर के पुत्र कपिल मुनि के श्राप से भस्म हो गए थे। उनके उद्धार के लिए राजा भगीरथ ने कठिन तपस्या की। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गंगा को पृथ्वी पर अवतरित होने की अनुमति दी। लेकिन गंगा के वेग को रोकने के लिए शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण कर लिया और बाद में धीरे-धीरे धरती पर प्रवाहित किया। मान्यता है कि तभी से गंगा मां की पूजा होने लगी।
पवित्रता और मोक्षदायिनी नदी
हिंदू मान्यता के अनुसार गंगा में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मृत्यु के बाद आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि गंगा के तट पर कई धार्मिक स्थल स्थित हैं, जैसे वाराणसी, हरिद्वार, प्रयागराज और गंगोत्री।
अंतिम संस्कार और अस्थि विसर्जन
हिंदू परंपरा में मृत्यु के बाद गंगा में अस्थियों का विसर्जन करना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इससे आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। वाराणसी और प्रयागराज इस परंपरा के प्रमुख केंद्र हैं। गंगा नदी न केवल एक प्राकृतिक धरोहर है, बल्कि भारतीय संस्कृति, धर्म और इतिहास का प्रतीक भी है। इसकी प्राचीनता करोड़ों वर्ष पुरानी है, और इसके पीछे कई धार्मिक रहस्य छिपे हैं। गंगा का जल अमृत के समान माना जाता है, जो न केवल पवित्रता बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का भी प्रतीक है। हमें अपने कर्तव्य को समझते हुए गंगा को स्वच्छ और सुरक्षित बनाए रखना चाहिए, ताकि यह पवित्र धारा आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बनी रहे।
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