ऐसा कहा जाता है कि महाभारत के समय कृष्ण भगवान के कहने से अर्जुन द्वारिका से सुभद्रा का हरण कर ले आए थे। उस वक्त शंखवाली गांव में विश्राम किया था। गांव के पास ही सुभद्रा पहाड़ी पर स्थित भाद्राजून में अर्जुन और सुभद्रा का विवाह सुभद्रा पहाड़ी पर संपन्न होने पर पूर्वज सुखदेव मुनि ने विवाह संपन्न करवाया था। कृष्ण भगवान द्वारा दहेज में शंख और सुभद्रा द्वारा वाली भेंट स्वरूप प्रदान की गई। तब से इस गांव का नाम शंखवाली पड़ा। जो आज तक इसी शंखवाली नाम से जाना जाता है। कृष्ण द्वारा पूर्वजों को निर्देश दिया गया कि घोड़े पर बैठकर जहां तक तुम्हारी इच्छा हो वहां तक की भूमि के निशान कर दो, उसके उपरांत पूर्वज भगवान के पास पुन: लौटकर आए और भगवान कृष्ण से निवेदन किया कि भगवान हमारे लिए भूमि तो पर्याप्त है लेकिन यहां पर पानी खारा होने से भूमि का क्या मतलब। तब भगवान ने कहा कि जहां तक तुम्हारी सीमा है वहां तक पानी मीठा है और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। जबकि शंखवाली के चारों ओर पानी में खारापन है।
इसके साथ ही गांव में पांडवों द्वारा उनके वनवास के समय घूमते हुए शंखवाली आए तब उनको प्यास लगी, तब पानी पीने के लिए जमीन को खोदा था। उस कुएं पर आज भी पेंचका बना हुआ है। फिर कांची के शंकराचार्य द्वारा इस गांव में भगवान चारभुजा का मंदिर बनवाया गया। यहां सुबह एवं शाम को झालर, शंख व नगाड़ों की गूंज के साथ आरती होती है। मंदिर में चतुर्भुज विष्णु के रूप में भगवान राम एवं उसके साथ बाल रूप में धनुष धारण किए भरत, लक्ष्मण और शत्रुध्न की अलौकिक प्रतिमाएं विराजमान है। हाल ही में राजपुरोहित व्यास परिवार की ओर से मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया गया। जिसकी प्राण-प्रतिष्ठा 25 मई को हो रही है।