जानकारों के अनुसार रणथंभौर टाइगर रिजर्व से खुद चलकर आए बाघ आरवीटी-एक ने पूरे रामगढ अभयारण्य को अपना इलाका बना रखा है, जबकि रणथंभौर से लाई गई बाघिन आरवीटी-3 ने बूंदी के नजदीक के जंगलों में घूम रही है। इस बाघिन के साथ एक शावक भी है, जो अब कैमरा ट्रेप में मां के साथ घूमता नजर आ रहा है। मृत बाघिन आरवीटी-2 की दोनों मादा शावकों ने मेज नदी किनारे जंगल में अपने अलग-अलग इलाके बना लिए है। इनमें से एक बाघिन बड़े क्षेत्र में विचरण कर रही है। वनकर्मियों की अलग-अलग टीमें 24 घंटे बाघों की ट्रैकिंग कर रही है। स्टॉफ की कमी को देखते हुए होम गार्ड व वालेंटियर्स की भी मदद ली जा रही है।
एनक्लोजर में सीख रहा
टाइगर रिजर्व में पिछले दिनों कोटा के अभेड़ा बायलोजिकल पार्क से लाए नर शावक को जंगल के वातावरण में रहने की ट्रेङ्क्षनग दी जा रही है। यह नर अब युवा होने वाला है और नियमित शिकार कर रहा है। एनक्लोजर में यह बाघ अब तक एक दर्जन से अधिक शिकार कर चुका है। राज्य में चिडिय़ाघर के बाघ को रीवाइल्ड करने का यह पहला प्रयोग है, जो सफल होता दिख रहा है।
टाइगर रिजर्व में बाघों की निगरानी बेहतरीन तरीके से की जा रही है। स्टॉफ इस काम में 24 घंटे लगा हुआ है। सभी बाघ-बाघिन की फोटो ट्रेप कैमरों में नियमित आ रही है।
अरविंद कुमार झा, उपवन संरक्षक एवं उपक्षेत्र निदेशक रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व बूंदी