उत्तर और दक्षिण से प्रवेश
पूर्वाभिमुख इस मंदिर में उत्तर एवं दक्षिण दिशाओं से सीढिय़ों से प्रवेश की व्यवस्था है। वास्तु योजना में क्रमिक तौर पर मंदिर में मुख मण्डप, प्रवेश गलियारा, कक्षासन एवं प्रदक्षिणा पथ वाला स्तम्भ युक्त मण्डप तथा गर्भगृह है। उत्तरी एवं दक्षिणी हिस्सों में देवताओं के लिए स्थान नियत है। स्तम्भ युक्त मण्डप में एक शिवलिंग स्थापित है, वहीं मुख्य देवता गर्भगृह में विराजमान है। मण्डप की छत का अंदरुनी हिस्सा कुंडलीकार हैं, जबकि गर्भगृह क्रमश: घटते क्षेत्रफल वाले पाषाण पट्टिकाओं के वलय के रूप में है। प्रवेश द्वार को शिव, विष्णु मालाधारी यक्षों व अन्य गणों के अंकन से सुसज्जित किया गया है। ललाट बिम्ब पर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की प्रतिमा उकेरी गई है। मंदिर के दक्षिणी भाग में एक अन्य नागर शैली का लघु देवालय स्थित है।
शिवमय हो रहा वातावरण
आदिदेव शिव से जुड़े विशिष्ट दिवस महाशिवरात्रि के साथ सावन मास में सुबह के समय यहां शिव-स्तुति के समवेत स्वरों में जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक किया जाता है। रूद्रीपाठ के स्वर मंत्रों से समूचा वातावरण शिवमय हो जाता है। वैसे सप्ताह में प्रत्येक सोमवार को यहां श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ उमड़ती है। आस्था का केन्द्र होने के साथ-साथ यह शिव पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। मंदिर के सुंदर स्थापत्य शिल्प को निहारने के लिए देशी-सैलानी पहुंचते हैं और इसकी सुंदरता को कैमरे में कैद कर ले जाते हैं।