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जैसलमेर

शिवभक्तों की श्रद्धा का केंद्र 585 साल प्राचीन रत्नेश्वर महादेव मंदिर

जैसलमेर का ऐतिहासिक सोनार दुर्ग अपने भीतर कई प्राचीन और कलात्मक मंदिरों, राजप्रासादों और रिहाइश को आंचल में समाए हुए है।

जैसलमेरFeb 25, 2025 / 08:35 pm

Deepak Vyas

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जैसलमेर का ऐतिहासिक सोनार दुर्ग अपने भीतर कई प्राचीन और कलात्मक मंदिरों, राजप्रासादों और रिहाइश को आंचल में समाए हुए है। इनमें से एक है, दुर्ग के कुंड पाड़ा में नगर आराध्य भगवान लक्ष्मीनाथ मंदिर के सामने अवस्थित रत्नेश्वर महादेव मंदिर। मंदिर का निर्माण वर्ष 1441 में हुआ, यानी यह अनमोल विरासत करीब 585 साल पुरानी है। दुर्ग ही नहीं शहर भर के शिवभक्तों की आस्था के इस मंदिर में विशाल शिवलिंग को चमत्कारी माना जाता है। महाशिवरात्रि और पूरे सावन मास में यहां सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं। विशालकाय पीत पाषाणों से निर्मित मंदिर में पीले पत्थर की विशाल शिवलिंग पर जलाभिषेक और वहां बैठ कर शिवभक्ति में लीन भक्तों के मंत्रोच्चारण से अनुपम वातावरण निर्मित होता है। इस अलौकिक अनुभव को भक्त वहां पहुंचकर ही अनुभव कर सकते हंै। सुनहरे पीले पत्थरों पर बारीक नक्काशीदार और सूक्ष्म कार्य की वजह से इस प्राचीन मंदिर की भव्यता और बढ़ गई है। भगवान शिव से जुड़े आयोजनों के कारण यह जन-जन की आस्था का केन्द्र भी बना हुआ है।

उत्तर और दक्षिण से प्रवेश

पूर्वाभिमुख इस मंदिर में उत्तर एवं दक्षिण दिशाओं से सीढिय़ों से प्रवेश की व्यवस्था है। वास्तु योजना में क्रमिक तौर पर मंदिर में मुख मण्डप, प्रवेश गलियारा, कक्षासन एवं प्रदक्षिणा पथ वाला स्तम्भ युक्त मण्डप तथा गर्भगृह है। उत्तरी एवं दक्षिणी हिस्सों में देवताओं के लिए स्थान नियत है। स्तम्भ युक्त मण्डप में एक शिवलिंग स्थापित है, वहीं मुख्य देवता गर्भगृह में विराजमान है। मण्डप की छत का अंदरुनी हिस्सा कुंडलीकार हैं, जबकि गर्भगृह क्रमश: घटते क्षेत्रफल वाले पाषाण पट्टिकाओं के वलय के रूप में है। प्रवेश द्वार को शिव, विष्णु मालाधारी यक्षों व अन्य गणों के अंकन से सुसज्जित किया गया है। ललाट बिम्ब पर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की प्रतिमा उकेरी गई है। मंदिर के दक्षिणी भाग में एक अन्य नागर शैली का लघु देवालय स्थित है।

शिवमय हो रहा वातावरण

आदिदेव शिव से जुड़े विशिष्ट दिवस महाशिवरात्रि के साथ सावन मास में सुबह के समय यहां शिव-स्तुति के समवेत स्वरों में जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक किया जाता है। रूद्रीपाठ के स्वर मंत्रों से समूचा वातावरण शिवमय हो जाता है। वैसे सप्ताह में प्रत्येक सोमवार को यहां श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ उमड़ती है। आस्था का केन्द्र होने के साथ-साथ यह शिव पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। मंदिर के सुंदर स्थापत्य शिल्प को निहारने के लिए देशी-सैलानी पहुंचते हैं और इसकी सुंदरता को कैमरे में कैद कर ले जाते हैं।

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